ऊर्जा के परंपरागत स्रोत पर टिप्पणी लिखिए। Urja ke paramparagat srot par tipanni likhiye

Urja ke paramparagat srot par tipanni likhiye

प्रश्न – ऊर्जा के परंपरागत स्रोत पर टिप्पणी लिखिए।


परिचय

ऊर्जा मनुष्य के जीवन और विकास की मूल आवश्यकता है। हमारे दैनिक जीवन से लेकर औद्योगिक क्रियाकलापों तक, हर कार्य ऊर्जा पर निर्भर है। परंपरागत ऊर्जा स्रोत वे होते हैं जिन्हें मनुष्य लंबे समय से उपयोग में लाता आ रहा है। इनमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा और पारंपरिक बायोमास (जैसे लकड़ी, गोबर आदि) शामिल हैं। ये स्रोत सीमित हैं और इनका अत्यधिक उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है।


1. परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की परिभाषा

परंपरागत ऊर्जा स्रोत वे स्रोत होते हैं जिनका उपयोग लंबे समय से होता आ रहा है और जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधनों पर आधारित होते हैं। ये स्रोत नवीकरणीय नहीं होते और सीमित मात्रा में ही उपलब्ध होते हैं।


2. परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के प्रकार

क. कोयला

  • यह सबसे पुराना और प्रमुख ऊर्जा स्रोत है।
  • इसका प्रयोग मुख्य रूप से बिजली उत्पादन और इस्पात उद्योग में होता है।
  • भारत में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में कोयले के बड़े भंडार हैं।

ख. पेट्रोलियम (कच्चा तेल)

  • यह एक तरल जीवाश्म ईंधन है जिसका प्रयोग परिवहन, बिजली उत्पादन और रसायनों के निर्माण में होता है।
  • इससे पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, एलपीजी आदि बनाए जाते हैं।
  • भारत अपनी आवश्यकता का अधिकांश पेट्रोलियम आयात करता है।

ग. प्राकृतिक गैस

  • यह कोयला और पेट्रोलियम की तुलना में स्वच्छ ईंधन है।
  • इसका उपयोग खाना पकाने, बिजली उत्पादन और वाहनों में होता है।
  • भारत में यह असम, गुजरात और मुंबई हाई जैसे क्षेत्रों में पाई जाती है।

घ. परमाणु ऊर्जा

  • यह यूरेनियम और थोरियम से उत्पन्न होती है।
  • इससे अधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है।
  • भारत में तारापुर, कलपक्कम, रावतभाटा आदि में परमाणु संयंत्र हैं।

ङ. पारंपरिक बायोमास

  • इसमें लकड़ी, गोबर, फसल अवशेष आदि शामिल हैं।
  • ग्रामीण भारत में खाना पकाने और गर्मी के लिए इनका प्रयोग व्यापक रूप से होता है।
  • अस्थायी रूप से नवीकरणीय, लेकिन अत्यधिक उपयोग से वनों की कटाई और प्रदूषण होता है।

3. परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के लाभ

  • ऊर्जा उत्पादन में उच्च क्षमता: ये स्रोत लगातार बड़ी मात्रा में ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  • तकनीकी विकास: इनके लिए पूरी तकनीकी और संरचना पहले से उपलब्ध है।
  • औद्योगिक विकास का आधार: भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था का आधार बने हुए हैं।
  • विश्वसनीयता: मौसम पर निर्भर नहीं होते जैसे सौर या पवन ऊर्जा।

4. परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की हानियाँ

  • सीमित संसाधन: ये एक बार खत्म हो गए तो दोबारा नहीं बनते।
  • पर्यावरण प्रदूषण: इनसे वायु, जल और भूमि प्रदूषण होता है।
  • स्वास्थ्य समस्याएँ: कोयला और तेल से निकलने वाले धुएं से श्वसन और हृदय रोग होते हैं।
  • आयात निर्भरता: भारत जैसे देशों को पेट्रोलियम आयात करना पड़ता है जिससे आर्थिक बोझ बढ़ता है।
  • जलवायु परिवर्तन: इनसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे वैश्विक तापमान बढ़ता है।

5. भारत में परंपरागत ऊर्जा का स्थान

  • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है।
  • बिजली उत्पादन में लगभग 55–60% हिस्सा कोयले का है।
  • भारत धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है, लेकिन फिलहाल परंपरागत स्रोतों पर ही निर्भरता अधिक है।

6. टिकाऊ ऊर्जा नीति की आवश्यकता

  • ऊर्जा संरक्षण: मौजूदा संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग।
  • विविधता लाना: सौर, पवन, जल जैसे वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा।
  • प्रौद्योगिकियों का आधुनिकीकरण: पुराने थर्मल प्लांट्स को कम प्रदूषण वाले बनाना।
  • शिक्षा और जन-जागरूकता: ऊर्जा की बचत और प्रदूषण के प्रति जनता को शिक्षित करना।

निष्कर्ष

परंपरागत ऊर्जा स्रोतों ने मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन अब समय आ गया है कि इनका संतुलित और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। यदि हम टिकाऊ विकास चाहते हैं तो हमें वैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर तेजी से बढ़ना होगा। इसके लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ आम जनता की भागीदारी भी आवश्यक है।


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