Rajya Sarkaron Ki Shaktiyon Ka Varnan Kijiye
राज्य सरकारों की शक्तियों का वर्णन कीजिए।
भारत एक संघीय गणराज्य है, जहाँ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है। भारतीय संविधान ने संघीय ढांचे को अपनाया है, लेकिन यह अमेरिकी संघीय प्रणाली की तरह पूर्णतः संघीय नहीं, बल्कि संघीय + एकात्मक स्वरूप लिए हुए है। संविधान की सातवीं अनुसूची में शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों – संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची – के अंतर्गत किया गया है। राज्य सरकारों की शक्तियों का मुख्य आधार राज्य सूची और समवर्ती सूची के अंतर्गत दी गई विषय वस्तुएँ हैं।
राज्य सरकार का प्रमुख राज्यपाल (Governor) होता है, जो संवैधानिक प्रमुख होता है, जबकि वास्तविक कार्यकारी शक्ति मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है। राज्य सरकारों की शक्तियों को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है।
1. राज्य सरकार की संरचना
(क) कार्यपालिका (Executive)
- राज्य का राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होता है।
- मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यकारी शक्तियों का संचालन करते हैं।
- राज्यपाल को कार्यपालिका से जुड़ी शक्तियाँ मिलती हैं, लेकिन वह इन्हें मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग करते हैं।
(ख) विधानमंडल (Legislature)
- राज्य का विधानमंडल एकसदनीय (unicameral) या द्विसदनीय (bicameral) हो सकता है।
- अधिकांश राज्यों में केवल विधानसभा (Legislative Assembly) होती है, जबकि कुछ राज्यों में विधान परिषद (Legislative Council) भी होती है।
- राज्य की विधायी शक्तियाँ मुख्यतः राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने तक सीमित हैं।
(ग) न्यायपालिका (Judiciary)
- प्रत्येक राज्य में उच्च न्यायालय होता है, जो उस राज्य की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है।
- अधीनस्थ न्यायालय और जिला न्यायालय राज्य की न्यायपालिका का हिस्सा होते हैं।
2. राज्य सरकार की विधायी शक्तियाँ
राज्य सरकार की विधायी शक्तियाँ संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित तीन सूचियों पर आधारित हैं।
(i) राज्य सूची की शक्तियाँ
राज्य सरकारें राज्य सूची में वर्णित 61 विषयों (प्रारंभ में 66) पर कानून बना सकती हैं। जैसे –
- पुलिस
- लोक स्वास्थ्य
- कृषि
- जल आपूर्ति
- मछली पालन
- बाजार और मेला
- स्थानीय शासन व्यवस्था
- सार्वजनिक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था
(ii) समवर्ती सूची की शक्तियाँ
समवर्ती सूची में 52 विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
- शिक्षा
- बिजली
- पर्यावरण संरक्षण
- विवाह और तलाक
- वन एवं पशु संरक्षण
यदि केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव होता है, तो केंद्र का कानून सर्वोच्च माना जाता है।
(iii) अवशिष्ट विषय
अवशिष्ट विषयों पर केवल केंद्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। राज्य सरकार का अधिकार अवशिष्ट शक्तियों पर नहीं होता।
3. कार्यपालिका की शक्तियाँ
(i) राज्यपाल की शक्तियाँ
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।
- विधायी शक्तियाँ – विधानमंडल का सत्र बुलाना, अध्यादेश जारी करना।
- कार्यपालिका शक्तियाँ – मुख्यमंत्री की नियुक्ति, मंत्रिपरिषद की नियुक्ति।
- न्यायिक शक्तियाँ – दंड माफी, सजा स्थगन आदि देना।
- आपातकालीन शक्तियाँ – संविधानिक संकट की स्थिति में राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना।
(ii) मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की शक्तियाँ
- राज्य सरकार के प्रशासन का संचालन करना।
- राज्यपाल को नीतिगत सलाह देना।
- राज्य के बजट और विकास योजनाओं का क्रियान्वयन करना।
4. वित्तीय शक्तियाँ
- राज्य सरकार राज्य सूची के अंतर्गत कर और शुल्क लगा सकती है।
- राज्य के प्रमुख कर – बिक्री कर, मनोरंजन कर, भूमि राजस्व, स्टांप शुल्क, राज्य उत्पाद शुल्क, वाहन कर।
- राज्य का बजट विधानसभा में प्रस्तुत और पारित किया जाता है।
- वित्तीय संकट की स्थिति में राज्य केंद्र से अनुदान और सहायता प्राप्त कर सकता है।
5. न्यायिक शक्तियाँ
- उच्च न्यायालय राज्य की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है।
- उच्च न्यायालय राज्य के कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकता है।
- उच्च न्यायालय राज्यपाल और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर न्यायिक नियंत्रण रखता है।
- अधीनस्थ न्यायालयों की नियुक्ति और प्रशासनिक निगरानी भी उच्च न्यायालय के अधीन होती है।
6. कानून-व्यवस्था की शक्ति
- पुलिस व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
- राज्य पुलिस बल राज्य सरकार के नियंत्रण में कार्य करता है।
- दंगे, अपराध नियंत्रण, शांति बनाए रखने जैसे कार्य राज्य की जिम्मेदारी होती है।
7. प्रशासनिक शक्तियाँ
- राज्य सरकार अपने कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण और सेवा शर्तें निर्धारित करती है।
- राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करती है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, ग्रामीण विकास, महिला कल्याण, खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में राज्य की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।
8. राज्यपाल और केंद्र का संबंध
संविधान के अनुसार राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है।
- कई बार केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता है।
- राज्यपाल का पद संघीय ढांचे में एक संतुलनकारी भूमिका निभाता है।
9. राज्य सरकारों की सीमाएँ
राज्य सरकारों की शक्तियाँ व्यापक होते हुए भी सीमित हैं, क्योंकि –
- केंद्र सरकार को संविधान में अधिक शक्तियाँ दी गई हैं।
- राष्ट्रीय आपातकाल या राष्ट्रपति शासन की स्थिति में राज्य सरकार की शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं।
- समवर्ती सूची में कानूनों के टकराव की स्थिति में केंद्र का कानून सर्वोच्च होता है।
10. राज्य सरकारों की भूमिका और महत्व
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में राज्य सरकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- राज्य सरकारें जनता से सीधा जुड़ाव रखती हैं।
- वे स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान कर सकती हैं।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, कृषि और बुनियादी ढांचे के विकास में राज्य सरकारों का योगदान सबसे अधिक है।
11. निष्कर्ष
भारतीय संविधान ने राज्य सरकारों को पर्याप्त शक्तियाँ प्रदान की हैं ताकि वे अपने-अपने राज्यों के विकास, कानून-व्यवस्था और जनकल्याण को सुनिश्चित कर सकें। हालांकि केंद्र सरकार की शक्तियाँ अपेक्षाकृत अधिक हैं, परंतु राज्य सरकारें संघीय ढांचे की आत्मा हैं। राज्य सरकारों की सफलता जनता की भागीदारी, प्रशासन की पारदर्शिता और विकास योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करती है।
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