राज्य–केन्द्र संबंधों में उत्पन्न होने वाले दो प्रमुख विवादों का वर्णन कीजिए। Rajya–Kendra sambandhon mein utpann hone wale do pramukh vivaadon ka varnan kijiye.

राज्य–केन्द्र संबंधों में उत्पन्न होने वाले दो प्रमुख विवादों का वर्णन
(Bachelor of Arts – तृतीय वर्ष | विषय: राज्य राजनीति – भारत में)
विषय कोड: A3-POSC 2T
उत्तर शब्द सीमा: लगभग 1000 शब्द


परिचय

भारतीय संविधान एक संघात्मक ढांचा प्रदान करता है, जिसमें शक्ति का विभाजन केन्द्र और राज्यों के बीच स्पष्ट रूप से किया गया है। यद्यपि संविधान में भारत को “राज्यों का संघ” कहा गया है, लेकिन व्यवहार में भारतीय संघात्मक व्यवस्था अर्ध-संघात्मक (Quasi-Federal) मानी जाती है क्योंकि इसमें केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। इसी असंतुलन के कारण अनेक बार केन्द्र और राज्यों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं। राज्य–केन्द्र संबंधों में कई बार विवाद उत्पन्न होते हैं, जो संघीय ढांचे की स्थिरता और लोकतंत्र की प्रभावशीलता को चुनौती देते हैं।

इस उत्तर में हम राज्य–केन्द्र संबंधों में उत्पन्न होने वाले दो प्रमुख विवादों का विस्तृत वर्णन करेंगे:

  1. वित्तीय (राजकोषीय) विवाद
  2. राजनीतिक (सत्ता-संविधानिक) विवाद

1. वित्तीय विवाद (Financial Disputes)

प्रस्तावना

राज्य और केन्द्र दोनों को प्रशासन, विकास और कल्याणकारी योजनाओं को चलाने के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है। यद्यपि दोनों के लिए राजस्व स्रोत निर्धारित किए गए हैं, लेकिन केन्द्र सरकार को अधिकतम कर अधिकार प्राप्त हैं, जबकि राज्य सरकारें व्यय के लिए अधिक उत्तरदायी हैं। इससे वित्तीय असंतुलन उत्पन्न होता है।

संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ दी गई हैं:

  • संघ सूची – केन्द्र सरकार के लिए
  • राज्य सूची – राज्य सरकार के लिए
  • समवर्ती सूची – दोनों के लिए

राजस्व संग्रह का अधिकार मुख्यतः केन्द्र के पास है। राज्य सरकारों को संसाधनों का सीमित हिस्सा ही मिलता है।

विवाद के कारण

  • केन्द्र द्वारा संसाधनों का अनुचित वितरण:
    राज्यों को प्राप्त होने वाला हिस्सा कई बार केन्द्र सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर होता है। जो राज्य केन्द्र सरकार के अनुकूल होते हैं, उन्हें अधिक वित्तीय सहायता मिलती है, जबकि विपक्ष शासित राज्यों के साथ भेदभाव किया जा सकता है।
  • वित्त आयोग की सिफारिशों को न मानना:
    केन्द्र सरकार कई बार वित्त आयोग की अनुशंसाओं को पूरी तरह लागू नहीं करती, जिससे राज्यों को वित्तीय नुकसान होता है।
  • GST (वस्तु और सेवा कर) से जुड़ा विवाद:
    GST लागू होने के बाद राज्यों की स्वतंत्र टैक्स प्रणाली समाप्त हो गई। GST परिषद् में राज्यों की भूमिका सीमित होने से उन्हें निर्णयों में प्रभावी भागीदारी नहीं मिलती। इसके अलावा, GST क्षतिपूर्ति को लेकर भी कई बार केन्द्र और राज्यों के बीच विवाद हुआ है।
  • राज्यों की आत्मनिर्भरता में बाधा:
    राज्य सरकारें कई बार अपने स्रोतों से आय बढ़ाने की कोशिश करती हैं, लेकिन केन्द्र सरकार कई आर्थिक निर्णयों में हस्तक्षेप करती है, जिससे उनकी राजस्व स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

उदाहरण

  • पंजाब और केरल जैसे राज्यों ने बार-बार वित्तीय भेदभाव का आरोप लगाया है।
  • COVID-19 महामारी के दौरान GST क्षतिपूर्ति का भुगतान केन्द्र द्वारा समय पर न किए जाने पर भी व्यापक विवाद हुआ।

2. राजनीतिक विवाद (Political Disputes)

प्रस्तावना

राजनीतिक विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा शासित होती हैं। ऐसे में राजनीतिक वैचारिक मतभेद, प्रशासनिक टकराव और अधिकारों के दुरुपयोग की स्थिति उत्पन्न होती है।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 356 – राष्ट्रपति शासन:
    राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में केन्द्र सरकार अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है।
  • राज्यपाल की नियुक्ति – अनुच्छेद 155-156:
    राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति (केन्द्र सरकार की सिफारिश पर) करता है। राज्यपाल का कार्यकाल और भूमिका केन्द्र पर निर्भर करती है।

विवाद के कारण

  • राज्यपाल की भूमिका को लेकर विवाद:
    राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है, जिसके चलते कई बार राज्यपाल विपक्षी सरकारों के कार्यों में अड़चनें डालते हैं। इससे कार्यपालिका और राज्यपाल के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है।
  • राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग:
    अतीत में कई बार विपक्ष शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 356 का राजनीतिक हितों के लिए दुरुपयोग किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने एस.आर. बम्मई केस (1994) में इसे असंवैधानिक करार देते हुए दिशानिर्देश जारी किए थे।
  • कानून व्यवस्था पर टकराव:
    कानून व्यवस्था राज्य विषय है, लेकिन केन्द्र सरकार कई बार राष्ट्रीय एजेंसियों (जैसे CBI, NIA) को राज्यों में बिना अनुमति के भेज देती है, जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं।
  • राजनीतिक निर्णयों में तालमेल की कमी:
    जैसे – कृषि कानूनों पर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों का विरोध। राज्यों को भरोसे में लिए बिना लाए गए ऐसे निर्णयों से टकराव होता है।

उदाहरण

  • महाराष्ट्र में 2019 की सरकार गठन प्रक्रिया:
    राज्यपाल की भूमिका को लेकर प्रश्न उठे, जब सुबह-सुबह राष्ट्रपति शासन हटाकर बिना स्पष्ट बहुमत के सरकार शपथ दिलाई गई।
  • पश्चिम बंगाल में केन्द्र–राज्य टकराव:
    CBI की छापेमारी और राज्य सरकार की अनुमति के बिना कार्यवाही को लेकर टकराव हुआ। राज्य सरकार ने CBI को “सहमति” (Consent) देने से इनकार कर दिया।

निष्कर्ष

भारतीय संघात्मक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संतुलित, सहयोगपूर्ण और विश्वासपूर्ण संबंध अत्यंत आवश्यक हैं। वित्तीय और राजनीतिक विवाद यदि बार-बार उत्पन्न होते हैं, तो इससे देश के लोकतंत्र और प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

समाधान के सुझाव:

  1. वित्त आयोग को और अधिक स्वायत्त बनाया जाए।
  2. राज्यपाल की नियुक्ति के लिए सभी दलों से परामर्श अनिवार्य किया जाए।
  3. राज्यों को आर्थिक और प्रशासनिक स्वतंत्रता दी जाए।
  4. राज्य–केन्द्र परिषद (Inter-State Council) को नियमित रूप से सक्रिय किया जाए।
  5. संविधान के संघात्मक मूल्यों का सम्मान सभी स्तरों पर किया जाए।

यदि आप चाहें, मैं इस उत्तर को पीडीएफ फ़ॉर्मेट में डिजाइन करके भी दे सकता हूँ — शीर्षकों को हाइलाइट कर के, यूनिवर्सिटी सबमिशन जैसा तैयार किया हुआ।

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