प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के ऐतिहासिक महत्व को समझाइए। Prachin Bharatiya Murtikala ke Aitihasik Mahatva ko Samjhaiye

Prachin Bharatiya Murtikala ke Aitihasik Mahatva ko Samjhaiye

प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के ऐतिहासिक महत्व को समझाइए।

(B.A. Final Year – History | Indian Life Tradition – Paper I)


🔶 प्रस्तावना

प्राचीन भारतीय मूर्तिकला भारत की सांस्कृतिक और कलात्मक पहचान की एक अमूल्य धरोहर है। यह न केवल धार्मिक विश्वासों का कलात्मक प्रतिबिंब है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक विकास का सजीव दस्तावेज भी है। भारत की यह परंपरा हजारों वर्षों से सतत रूप से विकसित होती रही है – सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मध्यकालीन मंदिर स्थापत्य तक।

Table of Contents

मूर्तिकला केवल पत्थर या धातु में बनी मूर्ति नहीं होती, बल्कि वह उस समय की लोक-संवेदनाओं, धार्मिक भावनाओं और शासन व्यवस्था को भी प्रकट करती है। अतः इसकी ऐतिहासिक महत्ता केवल सौंदर्यबोध तक सीमित नहीं बल्कि बहुआयामी है।


🔶 प्राचीन भारतीय मूर्तिकला का अर्थ और प्रकृति

मूर्तिकला का तात्पर्य उस कला से है, जिसमें किसी ठोस माध्यम (जैसे पत्थर, धातु, मिट्टी, लकड़ी) को काटकर, गढ़कर या ढालकर एक त्रि-आयामी दृश्य रूप प्रदान किया जाता है। भारत में मूर्तियाँ मुख्यतः धार्मिक, पौराणिक, राजनैतिक या जनजीवन से संबंधित विषयों पर आधारित रही हैं।

इन मूर्तियों में विविध भावनाओं, मुद्राओं और प्रतीकों के माध्यम से एक व्यापक सन्देश निहित होता था। उदाहरणस्वरूप, बुद्ध की ध्यानमुद्रा, शिव का तांडव या दुर्गा की महिषासुरमर्दिनी रूप – ये सभी विशिष्ट अर्थ और सांस्कृतिक सन्दर्भों को अभिव्यक्त करते हैं।


🔶 प्राचीन भारतीय मूर्तिकला का ऐतिहासिक विकास

1. सिंधु घाटी सभ्यता (2500–1500 ई.पू.)

  • सबसे पुरानी और उन्नत नगरीय सभ्यता।
  • प्रमुख मूर्तियाँ:
    • नर्तकी की कांस्य मूर्ति: यह 11 सेंटीमीटर की छोटी-सी मूर्ति है, परन्तु उसमें गजब का लय, जीवन्तता और शारीरिक सौंदर्य दिखाई देता है।
    • पुरोहित राजा की मूर्ति: यह पत्थर की बनी मूर्ति प्रशासनिक या आध्यात्मिक सत्ता की ओर संकेत करती है।
  • विशेषता: मूर्तियों में यथार्थवाद, प्रकृति के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण और उच्च तकनीकी कौशल।

2. मौर्य काल (321–185 ई.पू.)

  • सम्राट अशोक के शासनकाल में मूर्तिकला को संरक्षण मिला।
  • प्रमुख उदाहरण:
    • सारनाथ का सिंह स्तंभ (राष्ट्रीय प्रतीक) – यह मौर्य कालीन चमकदार पॉलिश वाले पत्थरों का श्रेष्ठ उदाहरण है।
    • यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियाँ – धार्मिक और लोकविश्वास के मेल का प्रतीक।
  • मौर्य काल में मूर्तिकला में प्रतीकात्मकता और राजनीतिक संदेश प्रकट हुआ।

3. शुंग और सातवाहन काल (2री सदी ई.पू.–1री सदी ई.)

  • इस काल में बौद्ध धर्म के संरक्षण से स्तूपों और विहारों का निर्माण हुआ।
  • सांची और भरहुत स्तूपों पर मूर्तिकला के रूप में जातक कथाओं, बौद्ध चक्र, पुष्प, पशु-बिरादरी आदि का अद्भुत चित्रण मिलता है।
  • मूर्तिकला में कथा कहने की परंपरा विकसित हुई।

4. कुषाण काल (1री–3री सदी ई.)

  • इस काल में गांधार और मथुरा शैली का उद्भव।
    • गांधार शैली: यूनानी-रोमन प्रभाव से युक्त, यथार्थवादी शैली।
    • मथुरा शैली: स्थानीय भारतीय शैली, जिसमें भाव-प्रधान मूर्तियाँ थीं।
  • बुद्ध की पहली मानवाकृति मूर्तियाँ इसी काल में बनीं।

5. गुप्त काल (4थी–6ठी सदी ई.) – मूर्तिकला का स्वर्ण युग

  • इस युग में धार्मिक मूर्तिकला अपने चरम पर पहुँची।
  • विशेषताएँ:
    • मूर्तियों में संतुलन, लय, सौंदर्य और आध्यात्मिक भावनाओं का अद्भुत समन्वय।
    • उदाहरण: सारनाथ की बुद्ध प्रतिमा – गंभीरता, करुणा और शांति का प्रतीक।
  • शिल्पकला शास्त्रों का विकास हुआ।

6. मध्यकाल (7वीं–13वीं सदी)

  • विभिन्न मंदिर स्थापत्य में मूर्तिकला का अभूतपूर्व विकास।
  • प्रमुख उदाहरण:
    • खजुराहो (म.प्र.): शृंगारिकता और आध्यात्मिकता का संतुलन।
    • कोणार्क सूर्य मंदिर (उड़ीसा): रथ के पहियों पर चित्रित दृश्य।
    • एलोरा और अजन्ता गुफाएँ: देवताओं, आम जनजीवन, नृत्य, संगीत, ध्यान के दृश्य।
  • मूर्तिकला आम जनता से जुड़ गई थी।

🔶 धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व

🔹 हिंदू धर्म में

  • मूर्तियाँ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति थीं। हर मुद्रा और वाहन का विशेष अर्थ था।
  • शिव-नटराज, विष्णु-शेषशायी, दुर्गा-महिषासुरमर्दिनी जैसी मूर्तियाँ गहराई से भावनात्मक व दार्शनिक अर्थ समेटे थीं।

🔹 बौद्ध धर्म में

  • आरंभ में प्रतीकात्मकता: धर्मचक्र, बोधिवृक्ष, चरणचिह्न
  • बाद में बुद्ध की मानव प्रतिमा गंधार और मथुरा शैली में उभरी।

🔹 जैन धर्म में

  • तीर्थंकरों की ध्यानमुद्रा में मूर्तियाँ – आत्म-शुद्धता और संयम का प्रतीक।

🔶 शिक्षा, नैतिकता और सांस्कृतिक संरचना में भूमिका

  • मूर्तियाँ धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत, जातक कथाओं को दृश्य रूप में प्रस्तुत करती थीं।
  • अशिक्षित जनमानस के लिए मूर्तियाँ नैतिक और धार्मिक शिक्षा का माध्यम बनीं।
  • जीवन शैली, वेशभूषा, संगीत, नृत्य, वास्तुकला की जानकारी इन्हीं से मिलती है।

🔶 वास्तुकला और स्थापत्य में योगदान

  • मंदिरों, स्तूपों और गुफाओं में मूर्तियों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
  • उदाहरण:
    • होयसलेश्वर मंदिर, कर्नाटक – अत्यंत सूक्ष्म और जटिल मूर्तियाँ।
    • कोणार्क सूर्य मंदिर – स्थापत्य और मूर्तिकला का अद्वितीय समन्वय।

🔶 मूर्तिकला की कलात्मक विशेषताएँ

विशेषता विवरण
भाव-प्रकटन हर मूर्ति में विशेष भाव – करुणा, शक्ति, तांडव, शांति आदि
आसन और मुद्रा हर मुद्रा का धार्मिक/दार्शनिक अर्थ
वस्त्र-आभूषण तत्कालीन फैशन और शिल्प तकनीक का प्रमाण
वर्णनात्मकता कथाओं और प्रतीकों का मूर्तियों में चित्रण
स्थानीय शैलियाँ नागर, द्रविड़, वेसर शैली का विकास

🔶 ऐतिहासिक महत्व

  • प्राचीन मूर्तिकला प्राथमिक ऐतिहासिक स्रोत के रूप में काम करती है।
  • यह न केवल शासकों की धार्मिक नीति को दर्शाती है, बल्कि शासन, समाज, जातीय संरचना, कला, संस्कृति और आर्थिक स्थिति की जानकारी भी प्रदान करती है।
  • मूर्तियाँ यह प्रमाण देती हैं कि शासक कला संरक्षक थे और उन्होंने संस्कृति को संरक्षण दिया।

🔶 संरक्षण और आधुनिक मान्यता

  • आज कई प्राचीन मूर्तियाँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
  • खजुराहो, महाबलीपुरम, एलोरा जैसे स्थल यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित हैं।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इन मूर्तियों का संरक्षण करता है।
  • मूर्तिकला को समझना आज भी इतिहास, धर्मशास्त्र, कलाशास्त्र और पुरातत्त्व के अध्ययन के लिए अनिवार्य है।

🔶 निष्कर्ष

प्राचीन भारतीय मूर्तिकला केवल धार्मिक मूर्तियों का संकलन नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा का प्रतिबिंब है। इसमें वह सब कुछ समाहित है जो भारत को भारत बनाता है – धर्म, दर्शन, कला, समाज, लोकजीवन और शासन। यह मूर्तियाँ न केवल अतीत का सौंदर्य दर्शाती हैं, बल्कि आज भी हमें हमारी संस्कृति से जोड़ती हैं।

इन मूर्तियों का ऐतिहासिक महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि वे हमें बिना लिखे इतिहास को पढ़ने और समझने का अवसर देती हैं। वे हमारी संस्कृति, धर्म और आस्थाओं के साथ-साथ समाज की संरचना और जीवन शैली को भी उजागर करती हैं। अतः मूर्तिकला भारत की ऐतिहासिक चेतना की स्थायी धरोहर है।


पर्यावरण की परिभाषा एवं अर्थ को विवेचना कीजिए। Paryavaran ki Paribhasha evam Arth ko Vivechna Kijiye

भारत सरकार की योजनाओं को समझाइए। Bharat Sarkar ki Yojnaon ko Samjhaiye

भारत के मेलों का महत्व को समझाइए। Bharat ke Melon ka Mahatva Samjhaiye

प्राचीन भारत के प्रमुख तीर्थ यात्रा पर प्रकाश डालिए। Prachin Bharat ke Pramukh Teerth Yatraon par Prakash Daliye

प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों पर प्रकाश डालिए | Prachin Bharatiya Vishwavidyalayon par Prakash Daliye

1 thought on “प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के ऐतिहासिक महत्व को समझाइए। Prachin Bharatiya Murtikala ke Aitihasik Mahatva ko Samjhaiye”

Leave a Comment