पर्यावरण की परिभाषा एवं अर्थ को विवेचना कीजिए। Paryavaran ki Paribhasha evam Arth ko Vivechna Kijiye

Paryavaran ki Paribhasha evam Arth ko Vivechna Kijiye

प्रश्न – पर्यावरण की परिभाषा एवं अर्थ की विवेचना कीजिए।

(BA – Final Year | विषय: भारतीय जीवन परंपरा | A3-HIST 1D)


परिचय:

पर्यावरण शब्द आज के समय में सर्वाधिक चर्चित और महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है। यह एक ऐसा व्यापक शब्द है, जो न केवल प्राकृतिक तत्वों को सम्मिलित करता है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और तकनीकी पहलुओं को भी अपने अंतर्गत समाहित करता है। पर्यावरण मनुष्य और उसके चारों ओर की भौतिक, जैविक, और सामाजिक परिस्थितियों का समुच्चय है, जो उसके जीवन को प्रभावित करती हैं।


1. पर्यावरण की मूल परिभाषा और व्युत्पत्ति:

पर्यावरण शब्द संस्कृत के “परि” (अर्थात् चारों ओर) और “आवरण” (अर्थात् घेराव) से मिलकर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ हुआ — “जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है।”

परिभाषा:

“पर्यावरण वह समस्त जैविक और अजैविक कारकों का समूह है, जो किसी जीवधारी के चारों ओर उपस्थित होता है और उसके जीवन, व्यवहार, अस्तित्व, तथा विकास को प्रभावित करता है।”


2. पर्यावरण के तत्व एवं संरचना:

पर्यावरण को दो मुख्य घटकों में बाँटा जाता है:

घटक उदाहरण
(1) जैविक (Biotic) मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूक्ष्मजीव
(2) अजैविक (Abiotic) जल, वायु, मृदा, तापमान, ध्वनि, प्रकाश

इन दोनों घटकों के बीच गहरा पारस्परिक संबंध होता है। जैविक जीवन के लिए अजैविक तत्व आधार होते हैं, और इनका संतुलन ही पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को बनाए रखता है।


3. विद्वानों द्वारा पर्यावरण की परिभाषाएँ:

  • पार्किंसन:
    “पर्यावरण सभी बाहरी कारकों का वह समूह है, जो किसी जीव के जीवन को प्रभावित करता है।”
  • इकोलॉजी शब्दकोष (Ecology Dictionary):
    “पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक और जैविक कारकों का संयोजन है, जो जीवधारियों के अस्तित्व और विकास को प्रभावित करते हैं।”
  • यूनेस्को (UNESCO):
    “पर्यावरण वह बाह्य परिस्थितियाँ हैं, जो किसी जीव को प्रभावित करती हैं और जिसमें वह निवास करता है।”

4. पर्यावरण का व्यापक अर्थ:

पर्यावरण केवल प्राकृतिक सीमाओं तक सीमित नहीं है। यह एक बहुस्तरीय और बहुआयामी अवधारणा है:

  • भौतिक पर्यावरण: पृथ्वी, पर्वत, समुद्र, नदियाँ, वायुमंडल, जलवायु।
  • सामाजिक पर्यावरण: मानव संबंध, सामाजिक व्यवस्थाएँ, परंपराएँ।
  • आर्थिक पर्यावरण: संसाधनों की उपलब्धता, उत्पादन, खपत।
  • सांस्कृतिक पर्यावरण: धर्म, भाषा, रीति-रिवाज।
  • राजनीतिक पर्यावरण: शासन व्यवस्था, नीतियाँ, कानून।

5. मानव और पर्यावरण का अंतर्संबंध:

मनुष्य और पर्यावरण का संबंध परस्पर प्रभावशील है। मनुष्य पर्यावरण से:

  • भोजन प्राप्त करता है,
  • जल और वायु लेता है,
  • ऊर्जा प्राप्त करता है,
  • आश्रय बनाता है।

साथ ही, मनुष्य पर्यावरण को विकसित, परिवर्तित, और कई बार विनष्ट भी करता है। जैसे:

  • वनों की कटाई (Deforestation),
  • औद्योगिक प्रदूषण,
  • जलवायु परिवर्तन,
  • जैव विविधता का ह्रास।

6. आधुनिक युग में पर्यावरणीय संकट:

आज का युग पर्यावरणीय संकट का युग बन गया है। मनुष्य की गतिविधियाँ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रही हैं:

  • वायु प्रदूषण (Air Pollution)
  • जल प्रदूषण (Water Pollution)
  • ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution)
  • मृदा क्षरण (Soil Degradation)
  • ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming)
  • ओजोन क्षरण (Ozone Layer Depletion)
  • जैव विविधता का ह्रास (Loss of Biodiversity)

इन सभी का मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है — जैसे रोगों में वृद्धि, प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, कृषि संकट, जल संकट आदि।


7. पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास:

पर्यावरण को संरक्षित रखने हेतु वैश्विक व राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं:

राष्ट्रीय प्रयास:

  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
  • जल (प्रदूषण निवारण) अधिनियम, 1974
  • वायु (प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)

अंतरराष्ट्रीय प्रयास:

  • स्टॉकहोम सम्मेलन (1972)
  • क्योटो प्रोटोकॉल (1997)
  • पेरिस समझौता (2015)
  • COP-28 जलवायु सम्मेलन

8. शिक्षा में पर्यावरण का समावेश:

पर्यावरण शिक्षा आज की आवश्यकता है। बच्चों में प्रारंभ से ही पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने हेतु:

  • एनसीईआरटी (NCERT) ने स्कूली पाठ्यक्रम में विषय शामिल किए हैं।
  • यूजीसी (UGC) ने स्नातक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य किया है।
  • विश्वविद्यालयों में पर्यावरण अध्ययन (Environmental Studies) पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

9. पर्यावरण संरक्षण के उपाय:

पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  1. वनों की सुरक्षा और वृक्षारोपण।
  2. पुनर्चक्रण (Recycling) को प्रोत्साहन।
  3. जैविक खेती और पर्यावरण अनुकूल तकनीकों को बढ़ावा।
  4. वाहनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना।
  5. प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग।
  6. प्लास्टिक का सीमित प्रयोग।
  7. जन-जागरूकता कार्यक्रम।

10. पर्यावरण दिवस और सार्वजनिक भागीदारी:

  • 5 जून को प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
  • इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।
  • विद्यालयों, महाविद्यालयों, संस्थानों में अभियान चलाए जाते हैं।
  • हर नागरिक को व्यक्तिगत रूप से पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बनना चाहिए।

निष्कर्ष:

पर्यावरण केवल हमारे चारों ओर फैली परिस्थितियाँ नहीं हैं, यह हमारे अस्तित्व की बुनियाद है। यदि पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है, तो जीवन संकट में आ जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम:

  • पर्यावरण के महत्व को समझें,
  • अपने व्यवहार में बदलाव लाएँ,
  • प्रकृति के साथ सहअस्तित्व की भावना अपनाएँ।

“स्वस्थ पर्यावरण ही सुरक्षित भविष्य की कुंजी है।”

अतः, पर्यावरण की रक्षा करना केवल सरकार का कर्तव्य नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।


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