प्रश्न: क्षेत्रीय हितों और आकांक्षाओं के कारण राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा है?
B.A. तृतीय वर्ष (2024–25), विषय: भारतीय राज्य राजनीति (State Politics in India), पेपर-II, कोड: A3-POSC 2T
उत्तर:
प्रस्तावना:
भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा हुआ राष्ट्र है, जहाँ विभिन्न धर्म, भाषा, जाति, संस्कृति और क्षेत्रीय पहचानें पाई जाती हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के संविधान निर्माताओं ने इस विविधता को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा संघात्मक ढांचा तैयार किया जिसमें राज्यों को पर्याप्त स्वायत्तता दी गई। किंतु समय के साथ क्षेत्रीय हितों और आकांक्षाओं ने भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला है। यह प्रभाव न केवल नीतिगत स्तर पर देखने को मिला है, बल्कि दलगत राजनीति, चुनावी रणनीति और प्रशासनिक निर्णयों में भी इसका स्पष्ट प्रभाव पड़ा है।
क्षेत्रीय हित और आकांक्षाएँ: एक परिचय
क्षेत्रीय हित उन मुद्दों को कहा जाता है जो किसी विशेष राज्य, प्रदेश या भौगोलिक क्षेत्र के लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनीतिक आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं से संबंधित होते हैं।
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ उन अपेक्षाओं, आशाओं और राजनीतिक माँगों को दर्शाती हैं जो क्षेत्र विशेष के लोग अपनी विशिष्ट पहचान और विकास के लिए रखते हैं।
राजनीति पर क्षेत्रीय हितों और आकांक्षाओं का प्रभाव:
1. क्षेत्रीय दलों का उदय
क्षेत्रीय हितों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। जैसे:
- तमिलनाडु में DMK और AIADMK
- पंजाब में शिरोमणि अकाली दल
- महाराष्ट्र में शिवसेना
- उत्तर प्रदेश और बिहार में सपा और राजद
इन दलों ने स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय राजनीति में उठाया, जिससे राज्य आधारित राजनीति को बल मिला।
2. संघीय ढाँचे को सुदृढ़ता
क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित किया। इससे भारतीय संघात्मक व्यवस्था में विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला। राज्यों की स्वायत्तता को लेकर चर्चा बढ़ी और कई संवैधानिक सुधार भी हुए।
3. राजनीतिक गठबंधन और गठबंधन सरकारों का निर्माण
1990 के बाद का दौर “गठबंधन राजनीति” का रहा, जिसमें क्षेत्रीय दलों की भूमिका निर्णायक बन गई। केंद्र सरकार बनाने में क्षेत्रीय दलों का समर्थन आवश्यक हो गया, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में भी क्षेत्रीय मुद्दों की अहमियत बढ़ गई।
4. विकास की असमानता और क्षेत्रीय असंतोष
कुछ राज्यों में विकास की गति अधिक रही जबकि कुछ राज्यों में अपेक्षाकृत कम। इससे विकासात्मक असंतुलन उत्पन्न हुआ और क्षेत्रीय असंतोष ने जन्म लिया। इसके परिणामस्वरूप कई बार पृथक राज्य की माँग उठी, जैसे:
- उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ (2000 में बने)
- तेलंगाना (2014 में बना)
5. भाषाई और सांस्कृतिक पहचान का उभार
क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने भाषाई और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के मुद्दों को राजनीति में स्थान दिलाया। कई बार यह आंदोलनों के रूप में भी सामने आए, जैसे:
- तमिल भाषा की रक्षा हेतु आंदोलन
- मराठी अस्मिता पर शिवसेना का जोर
6. राजनीतिक मुद्दों का स्थानीयकरण
राष्ट्रीय चुनावों में भी अब क्षेत्रीय मुद्दे निर्णायक भूमिका निभाने लगे हैं। केंद्र की पार्टियाँ भी राज्य विशेष की समस्याओं और स्थानीय भावनाओं को अपने घोषणापत्र में शामिल करती हैं।
सकारात्मक प्रभाव:
- लोकतांत्रिक भागीदारी में वृद्धि – क्षेत्रीय हितों के प्रतिनिधित्व से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हुई।
- संघीय ढाँचे का सशक्तिकरण – क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने राज्यों की भूमिका को सशक्त किया।
- स्थानीय मुद्दों का समाधान – क्षेत्रीय दल स्थानीय समस्याओं को प्रभावी ढंग से उठा पाते हैं।
- राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि – क्षेत्रीय पहचान के प्रश्नों से नागरिकों की राजनीतिक जागरूकता बढ़ी।
नकारात्मक प्रभाव:
- जातीय और क्षेत्रीय विघटनवाद – अत्यधिक क्षेत्रीयता कभी-कभी राष्ट्र की एकता को चुनौती देती है।
- संकीर्ण राजनीतिक दृष्टिकोण – कुछ दल केवल एक क्षेत्र या समुदाय तक सीमित रह जाते हैं, जिससे समावेशी राजनीति बाधित होती है।
- केंद्र–राज्य टकराव – कई बार नीतियों को लेकर केंद्र और राज्यों में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- विकास की राजनीति पर असर – कई बार क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान के मुद्दे विकास और जनहित के मुद्दों पर भारी पड़ जाते हैं।
प्रमुख उदाहरण:
- तेलंगाना आंदोलन: क्षेत्रीय आकांक्षा का स्पष्ट उदाहरण जहाँ पृथक राज्य की माँग लंबे समय तक चली और अंततः 2014 में तेलंगाना बना।
- गोरखालैंड आंदोलन: पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखा समुदाय की सांस्कृतिक पहचान और स्वायत्तता की माँग।
- शिवसेना की ‘मराठी मानुष’ राजनीति: महाराष्ट्र में मराठी लोगों के हितों के लिए विशेष अभियान।
निष्कर्ष:
क्षेत्रीय हितों और आकांक्षाओं ने भारतीय राजनीति को नई दिशा और गहराई प्रदान की है। इससे न केवल लोकतंत्र मजबूत हुआ है, बल्कि संघीय ढाँचे को भी मजबूती मिली है। हालांकि, जब ये आकांक्षाएँ संकीर्ण स्वार्थ या असहिष्णुता का रूप ले लेती हैं, तब वे राष्ट्रीय एकता और विकास के लिए चुनौती बन जाती हैं। अतः आवश्यक है कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय हितों में संतुलन बनाए रखते हुए एक समावेशी और उत्तरदायी राजनीतिक प्रणाली को आगे बढ़ाया जाए।
(शब्द संख्या: लगभग 1000)
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