कृषि राजनीति (Agrarian Politics) भारत में कैसे विकसित हुई है?
(B.A. – तृतीय वर्ष | सत्र: 2024–25 | विषय: राज्य राजनीति – पेपर II | विषय कोड: A3–POSC 2T)
भूमिका:
भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, जहां देश की बड़ी आबादी का जीवन और जीविका कृषि पर निर्भर है। स्वतंत्रता के बाद भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हुई, जिसके साथ ही किसानों की समस्याएं और उनके अधिकार राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने लगे। धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी नीतियाँ, किसान आंदोलनों और राजनीतिक दलों की रणनीतियाँ, भारत में कृषि राजनीति (Agrarian Politics) के रूप में विकसित हुईं।
1. कृषि का सामाजिक–आर्थिक महत्व:
भारत की लगभग 60% जनसंख्या आज भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा, और औद्योगिक कच्चे माल की आपूर्ति कृषि पर ही आधारित है। इसीलिए कृषि से जुड़े मुद्दे हमेशा से भारत की राजनीति में केंद्र में रहे हैं।
2. स्वतंत्रता के बाद की कृषि नीतियाँ:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने कृषि सुधारों पर जोर दिया। इसके अंतर्गत भूमि सुधार, जमींदारी उन्मूलन, सीमित भू–स्वामित्व की नीति, कृषि ऋण सुविधाएं, सिंचाई परियोजनाएं और हरित क्रांति जैसे कदम उठाए गए।
- जमींदारी उन्मूलन: किसानों को जमीन का मालिक बनाने के लिए जमींदारों की शक्ति को समाप्त किया गया। यह राजनीतिक दृष्टि से बड़ा परिवर्तन था।
- भूमि सीलिंग कानून: कुछ राज्यों ने कृषि भूमि पर अधिकतम स्वामित्व की सीमा तय की, जिससे भूमिहीन किसानों को भूमि वितरित की जा सके।
- हरित क्रांति (Green Revolution): 1960 के दशक में हरित क्रांति ने भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाया, लेकिन इससे क्षेत्रीय विषमता भी पैदा हुई। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसका लाभ ज्यादा मिला, जबकि अन्य राज्य पीछे रह गए।
3. किसान आंदोलन और राजनीतिक प्रभाव:
1970 के दशक से भारत में संगठित किसान आंदोलनों की शुरुआत हुई। ये आंदोलन न केवल सामाजिक न्याय के सवाल उठाने लगे बल्कि सीधा–सीधा राजनीतिक दबाव बनाने का भी साधन बने।
- शरद जोशी का शेतकरी संघटना (महाराष्ट्र) – यह आंदोलन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), फसल बीमा और सस्ते ऋण जैसी मांगों को लेकर सक्रिय रहा।
- भारतीय किसान यूनियन (BKYU) – चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में उत्तर भारत के किसानों की आवाज बनी। इसने बिजली बिल, ऋण माफी, और फसल की सही कीमतों के लिए संघर्ष किया।
- इन आंदोलनों का असर यह हुआ कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने किसान कल्याण को अपने चुनावी घोषणापत्र का मुख्य हिस्सा बना लिया।
4. राजनीतिक दलों की भूमिका:
भारतीय राजनीति में कृषि और किसानों का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि लगभग हर प्रमुख राजनीतिक दल ने किसानों से संबंधित घोषणाएं कीं।
- कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार और गरीबी हटाओ जैसे कार्यक्रमों में कृषि को प्रमुखता दी।
- भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, कृषि बीमा योजना, और किसानों के लिए ई–नाम जैसी डिजिटल मंडियों की शुरुआत की।
- क्षेत्रीय दल जैसे आरएलडी (राष्ट्रीय लोक दल), शिवसेना, अकाली दल, समाजवादी पार्टी, और तृणमूल कांग्रेस ने अपने–अपने राज्यों में किसानों के हितों को केंद्र में रखकर राजनीति की।
5. कृषि राजनीति के मुद्दे:
भारत में कृषि राजनीति विभिन्न मुद्दों के इर्द–गिर्द घूमती रही है:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) – यह सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। किसान इसे कानूनी रूप देने की मांग करते हैं।
- कृषि ऋण माफी – चुनाव के समय में किसानों के कर्ज माफ करने का वादा एक सामान्य रणनीति बन गई है।
- फसल बीमा योजना – सरकार द्वारा संचालित योजनाओं की प्रभावशीलता और पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे हैं।
- बाजार व्यवस्था (APMC मंडियां) – किसानों को मंडी के बाहर बेचने की स्वतंत्रता देने और बिचौलियों को खत्म करने की बहस भी चलती रही है।
- तीन कृषि कानून (2020) – इन कानूनों के खिलाफ देशभर में बड़ा आंदोलन हुआ, जिसने कृषि राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र में ला दिया।
6. राज्यों की भूमिका:
भारत एक संघात्मक व्यवस्था वाला देश है, जहां कृषि राज्य सूची का विषय है। इस कारण से हर राज्य की कृषि नीति और उसकी राजनीतिक दिशा अलग–अलग रही है।
- पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में हरित क्रांति और MSP आधारित कृषि ने किसानों को सशक्त बनाया, तो वहीं बिहार जैसे राज्यों में मंडी व्यवस्था खत्म होने से किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- महाराष्ट्र, तेलंगाना, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में किसान आत्महत्याएं एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन चुकी हैं।
7. मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका:
कृषि राजनीति के विकास में मीडिया और नागरिक संगठनों की भूमिका भी अहम रही है। किसान आंदोलनों को मीडिया के माध्यम से राष्ट्रीय मंच मिला। सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन जैसे मुद्दों को लेकर युवा पीढ़ी भी जुड़ने लगी।
8. वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ:
आज कृषि राजनीति कई नई चुनौतियों का सामना कर रही है:
- जलवायु परिवर्तन और सूखा
- प्राकृतिक आपदाएं और बीमा व्यवस्था की खामियाँ
- कृषि में तकनीक का अभाव
- कृषि का व्यावसायीकरण बनाम परंपरागत खेती की बहस
- छोटे और सीमांत किसानों की समस्याएँ
निष्कर्ष:
भारत में कृषि राजनीति का विकास किसानों की समस्याओं, आंदोलनों और राजनीतिक दलों की रणनीतियों के माध्यम से हुआ है। यह न केवल एक सामाजिक–आर्थिक प्रक्रिया रही है, बल्कि राजनीतिक चेतना और नीति–निर्माण का भी महत्वपूर्ण आधार बनी है। आज भी कृषि राजनीति भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो किसानों की आवाज को सत्ता के गलियारों तक पहुँचाती है।
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