जूनागढ़ रियासत के भारत में विलय की स्थिति क्या थी? Junagadh riyasat ke Bharat mein vilay ki sthiti kya thi

जूनागढ़ रियासत के भारत में विलय की स्थिति
(1000 शब्दों में उत्तर)
विषय: राज्य राजनीति (State Politics in India)
B.A. तृतीय वर्ष – सत्र 2024–25


प्रस्तावना:

1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही ब्रिटिश भारत के अंतर्गत आने वाली लगभग 565 देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया। इस समय भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखना भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। इन्हीं रियासतों में से एक जूनागढ़ की स्थिति अत्यंत जटिल थी, जिसने भारत की एकता के सामने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया।


जूनागढ़ रियासत का परिचय:

जूनागढ़ रियासत वर्तमान गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित थी। यह एक हिन्दू-बहुल क्षेत्र था, परंतु इसके शासक नवाब मुहम्मद महाबत ख़ानजी मुस्लिम थे। रियासत की जनसंख्या लगभग 8 लाख थी, जिसमें लगभग 80% हिन्दू और 20% मुस्लिम थे।


रियासतों के विलय की नीति:

भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और वी. पी. मेनन ने देशी रियासतों को भारत में शांतिपूर्वक मिलाने की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (विलय-पत्र) के माध्यम से रियासतों को भारत में शामिल किया। अधिकांश रियासतों ने भारत में विलय स्वीकार कर लिया, लेकिन हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ जैसे कुछ मामलों में यह प्रक्रिया विवादास्पद बन गई।


जूनागढ़ की जटिल स्थिति:

जूनागढ़ की स्थिति अन्य रियासतों से भिन्न थी।

  1. भूगोलिक रूप से भारत से जुड़ा हुआ – जूनागढ़ चारों ओर से भारत की सीमाओं से घिरा था।
  2. धार्मिक असंतुलन – रियासत की 80% जनता हिन्दू थी, जबकि नवाब मुस्लिम था।
  3. जनता की भावना – अधिकतर जनता भारत में विलय चाहती थी।
  4. राजनीतिक अस्थिरता – नवाब ने जनता की भावना की अनदेखी की और पाकिस्तान से जुड़ने का निर्णय लिया।

नवाब का पाकिस्तान के पक्ष में निर्णय:

15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के समय नवाब ने विलय-पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए। लेकिन 15 सितंबर 1947 को नवाब महाबत ख़ानजी ने अचानक पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया और 13 सितंबर को पाकिस्तान के साथ इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर दिए। पाकिस्तान ने इस निर्णय को स्वीकार कर लिया और वहाँ अपने एजेंट को नियुक्त भी कर दिया।

यह निर्णय भारत सरकार के लिए अत्यंत चौंकाने वाला और अस्वीकार्य था।


भारत सरकार की प्रतिक्रिया:

भारत सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए:

  1. सैनिक और आर्थिक दबाव: भारत ने जूनागढ़ की सीमा पर सैनिक तैनात कर दिए और रियासत को आर्थिक रूप से अलग-थलग कर दिया।
  2. जनता का विरोध: सौराष्ट्र क्षेत्र में जनता और नेताओं ने नवाब के निर्णय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए।
  3. अरजी हकीकत सरकार: जूनागढ़ के पड़ोसी राज्यों के हिन्दू शासकों ने मिलकर “अरजी हकीकत सरकार” नाम से एक अस्थायी सरकार बनाई। इसका नेतृत्व सामलदास गांधी ने किया, जो महात्मा गांधी के रिश्तेदार थे।
  4. नवाब का पलायन: स्थिति बिगड़ती देख नवाब अपने परिवार के साथ पाकिस्तान भाग गया।
  5. भारतीय सेना का प्रवेश: 9 नवंबर 1947 को भारतीय सेना ने जूनागढ़ में प्रवेश किया और नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।

जनमत संग्रह:

भारत सरकार ने यह निर्णय जनता की इच्छा के अनुसार लेने का निर्णय किया और एक निष्पक्ष जनमत संग्रह की घोषणा की।

  1. जनमत संग्रह की तिथि: 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह कराया गया।
  2. परिणाम:
    • कुल मतदान: लगभग 2,01,457
    • भारत के पक्ष में मत: 2,01,436
    • पाकिस्तान के पक्ष में मत: केवल 91

यह परिणाम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जूनागढ़ की जनता भारत में शामिल होना चाहती थी।


पाकिस्तान का विरोध:

पाकिस्तान ने इस विलय को अवैध बताया और संयुक्त राष्ट्र में यह मुद्दा उठाया। लेकिन चूंकि रियासत की जनता ने स्वेच्छा से भारत के पक्ष में मतदान किया था, इसलिए यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के पक्ष में ही रहा।


संवैधानिक महत्व:

  1. भारत की अखंडता की रक्षा: जूनागढ़ के मामले ने भारत सरकार की संप्रभुता और राष्ट्रीय एकता की दृढ़ इच्छा शक्ति को प्रदर्शित किया।
  2. जनता की भागीदारी: यह मामला भारतीय लोकतंत्र के लिए एक उदाहरण बन गया कि किस प्रकार जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है।
  3. नैतिक और कूटनीतिक सफलता: भारत ने बिना अधिक रक्तपात के यह संकट हल किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नैतिक ऊँचाई बनाए रखी।

सरदार पटेल की भूमिका:

सरदार वल्लभभाई पटेल ने जूनागढ़ के विलय में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल राजनीतिक दूरदृष्टि दिखाई, बल्कि सख्त निर्णय लेकर यह सुनिश्चित किया कि भारत की भौगोलिक अखंडता बनी रहे। उनका स्पष्ट मत था – “हम अपने शरीर में कैंसर नहीं रहने देंगे।”


निष्कर्ष:

जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय एक ऐतिहासिक, राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। यह न केवल भारत की एकता को सुदृढ़ करने वाला कदम था, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि जनता की इच्छा ही किसी भी लोकतांत्रिक देश की नींव होती है। जूनागढ़ का यह विलय सरदार पटेल के अद्वितीय नेतृत्व और भारत सरकार की रणनीतिक कुशलता का परिणाम था, जो आज भी भारतीय राजनीति और इतिहास में एक मिसाल बना हुआ है।


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