Goa Mukti Andolan ko Samjhaiye
प्रश्न – गोवा मुक्ति आंदोलन को समझाइए।
(BA Final Year – History Paper II: समकालीन भारत का इतिहास 1947–2004 | Subject Code: A3-HIST 2D)
परिचय:
गोवा मुक्ति आंदोलन स्वतंत्र भारत के उस महत्वपूर्ण आंदोलन का हिस्सा है, जो पुर्तगाली उपनिवेशवाद से भारत की भूमि को मुक्त कराने के लिए लड़ा गया था। भारत की आज़ादी के बाद भी गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल के अधीन बने रहे। गोवा मुक्ति आंदोलन का उद्देश्य इन क्षेत्रों को भारतीय संघ में शामिल कराना था।
गोवा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
गोवा पर 1510 ई. में पुर्तगालियों ने कब्जा किया था। लगभग 450 वर्षों तक गोवा, दमन और दीव पुर्तगाल के उपनिवेश रहे। जबकि भारत के बाकी हिस्से 1947 में ब्रिटिश शासन से मुक्त हो गए, पुर्तगाल ने गोवा को अपने क्षेत्र का “अभिन्न अंग” घोषित किया और वहां से हटने से इनकार कर दिया।
गोवा मुक्ति आंदोलन की शुरुआत:
भारत की स्वतंत्रता के बाद गोवा में भी स्वतंत्रता की लहर शुरू हुई। वहां के लोग पुर्तगाली शासन के खिलाफ आवाज उठाने लगे। गोवा मुक्ति आंदोलन का आरंभ 1946 में हुआ जब डॉ. राम मनोहर लोहिया ने गोवा में पहला जनांदोलन चलाया। इसके बाद आंदोलन में तेजी आई और भारत के अन्य हिस्सों से भी समर्थन मिलने लगा।
मुख्य चरण और घटनाएँ:
1. 1946 का आंदोलन (डॉ. लोहिया का योगदान):
- डॉ. लोहिया ने गोवा जाकर पुर्तगाली शासन के खिलाफ जनसभा की।
- पुर्तगालियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया जिससे पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुए।
- इससे गोवा आंदोलन को एक राष्ट्रीय पहचान मिली।
2. 1950 और 60 के दशक में बढ़ती गतिविधियाँ:
- कई संगठनों जैसे आजाद गोवा कांग्रेस, गोमांतक पार्टी आदि ने सशस्त्र संघर्ष और सत्याग्रह शुरू किया।
- गोवा के लोगों के साथ भारत के स्वतंत्रता सेनानियों ने भी भाग लिया।
3. भारत सरकार की कूटनीतिक कोशिशें:
- नेहरू सरकार ने शुरू में पुर्तगाल के साथ शांतिपूर्ण वार्ता का प्रयास किया।
- संयुक्त राष्ट्र में मामला भी उठाया गया लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।
“ऑपरेशन विजय” – गोवा की सैन्य मुक्ति (1961):
1. सैन्य कार्रवाई का निर्णय:
- 1961 में भारत सरकार ने तय किया कि अब सैन्य कार्रवाई के द्वारा गोवा को मुक्त कराया जाएगा।
- 18 दिसंबर 1961 को “ऑपरेशन विजय” नामक अभियान चलाया गया।
2. सैन्य कार्रवाई और सफलता:
- तीनों सेनाओं – थल, जल और वायु – ने गोवा, दमन और दीव पर आक्रमण किया।
- 36 घंटे के अंदर पुर्तगाली सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- 19 दिसंबर 1961 को गोवा भारत का हिस्सा बन गया।
गोवा मुक्ति आंदोलन में प्रमुख योगदानकर्ता:
- डॉ. राम मनोहर लोहिया – आंदोलन की नींव रखने वाले।
- तुलसीदास बैरिस्टर, ट्रिस्टाओ ब्रगांजा कुन्हा, और पुरुषोत्तम काकोडकर – गोवा के भीतर सक्रिय नेताओं में शामिल।
- गोवा के आम नागरिकों – जिन्होंने पुर्तगाली शासन के खिलाफ लगातार संघर्ष किया।
गोवा मुक्ति का महत्व:
1. उपनिवेशवाद का अंत:
गोवा की मुक्ति ने भारत के उपनिवेश-मुक्त राष्ट्र बनने की प्रक्रिया को पूर्णता दी।
2. राष्ट्रीय अखंडता की पूर्ति:
यह भारतीय एकता और अखंडता की दिशा में एक बड़ा कदम था।
3. विदेश नीति पर प्रभाव:
इस सैन्य कार्रवाई से भारत की विदेश नीति में बदलाव आया – जहाँ अहिंसात्मक कूटनीति के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर सैन्य विकल्प को भी अपनाया गया।
गोवा की मुक्ति के बाद:
- गोवा को 1961 से 1987 तक केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।
- 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ और यह भारत का 25वां राज्य बना।
निष्कर्ष:
गोवा मुक्ति आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अंतिम कड़ी के रूप में देखा जाता है। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय चेतना, एकता और संप्रभुता की प्रतीक था। डॉ. लोहिया जैसे नेताओं के नेतृत्व में चलाए गए इस आंदोलन ने न केवल पुर्तगाली उपनिवेशवाद का अंत किया, बल्कि यह भी साबित किया कि भारत अपनी भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। आज 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हमें इस संघर्ष की याद दिलाता है।
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