Bhartiya Samvidhan Mein Dr Ambedkar Sahab Ke Yogdan Ki Vyakhya Kijiye
भारतीय संविधान में डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891-1956) भारतीय समाज सुधारक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री और स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता के रूप में विश्व प्रसिद्ध हैं। उन्हें ‘भारतीय संविधान के शिल्पकार’ (Architect of Indian Constitution) कहा जाता है। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण में उनके योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा। संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर को ‘संविधान मसौदा समिति (Drafting Committee)’ का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके नेतृत्व और दृष्टिकोण ने भारतीय संविधान को एक मजबूत, लोकतांत्रिक और समावेशी स्वरूप प्रदान किया।
नीचे भारतीय संविधान में डॉ. अंबेडकर के योगदान का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. संविधान सभा में भूमिका
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान निर्माण का दायित्व संविधान सभा को सौंपा गया। 29 अगस्त 1947 को डॉ. अंबेडकर को मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस समिति ने लगभग तीन वर्ष (2 वर्ष 11 माह 18 दिन) तक निरंतर मेहनत कर भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया। 26 नवंबर 1949 को संविधान को संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया।
2. सामाजिक न्याय और समानता की भावना
डॉ. अंबेडकर समाज में व्याप्त जातिवाद, भेदभाव और असमानता के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने संविधान में सामाजिक न्याय की अवधारणा को मूल आधार बनाया।
- अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया।
- छुआछूत और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 17 में ‘अस्पृश्यता उन्मूलन’ का प्रावधान किया।
- अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नीति का प्रावधान कर उन्हें समाज में समान अवसर देने का मार्ग प्रशस्त किया।
3. मौलिक अधिकारों का स्वरूप
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि किसी भी लोकतंत्र की आत्मा उसके मौलिक अधिकारों में निहित होती है।
- अनुच्छेद 12 से 35 तक के मौलिक अधिकारों को उन्होंने संविधान में सम्मिलित किया।
- इन अधिकारों में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और संवैधानिक उपचार का अधिकार प्रमुख हैं।
- उन्होंने ‘संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)’ को संविधान का ‘हृदय और आत्मा’ कहा।
4. धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता
डॉ. अंबेडकर चाहते थे कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष हो, ताकि हर नागरिक को किसी भी धर्म का पालन करने, प्रचार करने और उसका पालन करने की स्वतंत्रता मिल सके।
- अनुच्छेद 25 से 28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया।
- उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि राज्य किसी धर्म को विशेष संरक्षण न दे, बल्कि सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाए।
5. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था
डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि लोकतंत्र केवल राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी परिलक्षित होना चाहिए।
- उन्होंने संसदीय प्रणाली को अपनाने की सिफारिश की, जिसमें सरकार जनता के प्रति जवाबदेह रहती है।
- संविधान में ‘जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन’ की भावना को प्रमुख स्थान दिया।
- स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र चुनाव आयोग और संघीय ढांचे का निर्माण उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण का परिणाम है।
6. राज्य की नीतियों के निर्देशक तत्व
डॉ. अंबेडकर के सुझावों पर संविधान में राज्य नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) शामिल किए गए।
- इसका उद्देश्य समाजवादी, न्यायपूर्ण और कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था।
- उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल राजनीतिक लोकतंत्र पर्याप्त नहीं है; जब तक आर्थिक और सामाजिक समानता नहीं होगी, तब तक वास्तविक लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सकता।
7. संघीय ढांचा (Federal Structure)
भारत जैसे विशाल देश में एक मजबूत संघीय ढांचे की आवश्यकता थी।
- डॉ. अंबेडकर ने संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन स्थापित किया।
- उन्होंने केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने का प्रयास किया।
8. महिलाओं के अधिकार
डॉ. अंबेडकर महिलाओं की स्वतंत्रता और समानता के प्रबल समर्थक थे।
- उन्होंने महिलाओं को शिक्षा, संपत्ति और रोजगार में समान अवसर दिलाने की दिशा में काम किया।
- हिंदू कोड बिल (Hindu Code Bill) के माध्यम से उन्होंने महिलाओं को तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति में अधिकार देने की कोशिश की।
9. कानून का शासन (Rule of Law)
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।
- उन्होंने संविधान में कानून के शासन की अवधारणा को सर्वोच्च स्थान दिया।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी नागरिक कानून की दृष्टि में समान हों।
10. अल्पसंख्यकों के अधिकार
डॉ. अंबेडकर ने समाज के कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हेतु विशेष प्रावधान जोड़े।
- शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के प्रावधान ने इन वर्गों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का मार्ग दिया।
- अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी संस्कृति, भाषा और लिपि की स्वतंत्रता दी गई।
11. संवैधानिक मूल्यों की रक्षा
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि संविधान तभी सफल होगा जब इसके मूल्य समाज में लागू होंगे। उन्होंने कहा –
“संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि उसे चलाने वाले लोग अच्छे या बुरे होते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि लोकतंत्र को बचाना है, तो समाज में ‘भाईचारा, समानता और स्वतंत्रता’ को मजबूत करना होगा।
12. डॉ. अंबेडकर का दूरदर्शी दृष्टिकोण
डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज के सभी पहलुओं का अध्ययन कर संविधान को एक सजीव और लचीला दस्तावेज बनाया। उन्होंने विभिन्न देशों के संविधान से श्रेष्ठ प्रावधानों को अपनाकर भारत के लिए उपयुक्त व्यवस्था तैयार की।
- अमेरिकी संविधान से मौलिक अधिकार।
- ब्रिटिश संसद से संसदीय प्रणाली।
- आयरलैंड से राज्य नीति के निदेशक तत्व।
- कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से संघीय ढांचा।
निष्कर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान भारतीय संविधान में अत्यंत महत्वपूर्ण और अद्वितीय है। उन्होंने न केवल संविधान को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से मजबूत बनाया, बल्कि समानता, न्याय और स्वतंत्रता के मूल्यों को आधारभूत सिद्धांत बनाया। उनका मानना था कि संविधान तभी सफल होगा जब लोग इसके आदर्शों को समझेंगे और उनका पालन करेंगे।
आज भी भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और संविधान की प्रासंगिकता डॉ. अंबेडकर की दूरदर्शिता का परिणाम है।
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