प्रश्न: भारत में हैदराबाद रियासत के एकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
B.A. – तृतीय वर्ष (2024–25)
विषय: भारतीय राज्य राजनीति | प्रश्न पत्र – द्वितीय | विषय कोड: A3-POSC 2T
उत्तर:
प्रस्तावना:
भारत की स्वतंत्रता के समय देश में लगभग 562 रियासतें थीं, जिनका भारतीय संघ में एकीकरण एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। इनमें से अधिकांश रियासतें स्वेच्छा से भारत में विलीन हो गईं, परंतु कुछ रियासतें जैसे कि हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर ने एकीकरण में विरोध किया। हैदराबाद रियासत का मामला विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि यह आकार, जनसंख्या और रणनीतिक स्थिति में अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी। हैदराबाद का भारत में एकीकरण न केवल राजनीतिक बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक ऐतिहासिक घटना रही।
हैदराबाद रियासत का परिचय:
हैदराबाद रियासत भारत की सबसे बड़ी और समृद्ध रियासतों में से एक थी। यह दक्षिण भारत में स्थित थी, जिसमें वर्तमान तेलंगाना, आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से, महाराष्ट्र और कर्नाटक के भाग सम्मिलित थे। रियासत पर निज़ाम का शासन था, जो मुस्लिम था, जबकि वहाँ की अधिकांश जनसंख्या हिंदू थी।
निज़ाम की स्थिति और भारत में विलय का विरोध:
भारत की स्वतंत्रता के समय हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान ने भारत में विलय से इंकार कर दिया। वे हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दिलवाना चाहते थे। निज़ाम ने भारत सरकार से ‘Standstill Agreement’ (स्थगन समझौता) किया, जिसके अनुसार हैदराबाद अस्थायी रूप से भारत के साथ रहेगा लेकिन आंतरिक मामलों में स्वतंत्र होगा।
हालांकि, इस समझौते के बावजूद रियासत के भीतर असंतोष बढ़ने लगा। निज़ाम शासन के तहत ‘रज़ाकार’ नामक एक अर्धसैनिक संगठन सक्रिय हो गया जो हिंदू जनता पर अत्याचार करता था और हैदराबाद को स्वतंत्र इस्लामी राष्ट्र बनाने की कोशिश में था। रज़ाकारों के प्रमुख कासिम रज़वी की कट्टरता से पूरे राज्य में हिंसा और अस्थिरता फैलने लगी।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया:
भारत सरकार हैदराबाद की स्थिति से चिंतित थी। सरदार वल्लभभाई पटेल, जो उस समय भारत के गृहमंत्री थे, उन्होंने रियासतों के भारत में एकीकरण की नीति को दृढ़ता से अपनाया। पटेल ने हैदराबाद में चल रही कट्टरता और हिंसा को देखते हुए कहा कि भारत के केंद्र में एक स्वतंत्र इस्लामी राज्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
भारत सरकार ने कई बार शांतिपूर्ण वार्ता का प्रयास किया, लेकिन निज़ाम और रज़ाकार अड़े रहे। जब हालात अत्यधिक बिगड़ गए और भारत की एकता और आंतरिक सुरक्षा को खतरा महसूस हुआ, तब भारत सरकार ने सैन्य कार्रवाई का निर्णय लिया।
‘ऑपरेशन पोलो’ – सैन्य कार्रवाई:
भारत सरकार ने 13 सितंबर 1948 को “ऑपरेशन पोलो” नामक सैन्य अभियान आरंभ किया। इसे ‘पुलिस एक्शन’ भी कहा जाता है। इस अभियान का उद्देश्य था हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाना और वहाँ फैली अराजकता को समाप्त करना।
यह अभियान मात्र पाँच दिनों में ही सफल रहा। भारतीय सेना ने 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया। निज़ाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत में विलय को स्वीकार किया।
विलय के बाद की स्थिति:
हैदराबाद के भारत में विलय के बाद वहाँ एक सैन्य प्रशासक की नियुक्ति की गई। बाद में, वहाँ का प्रशासनिक ढांचा पुनः संगठित किया गया और 1956 में भाषाई आधार पर पुनर्गठन के बाद हैदराबाद को आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में विभाजित कर दिया गया। हैदराबाद शहर को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया गया।
हैदराबाद एकीकरण का महत्त्व:
- राष्ट्रीय एकता की पुष्टि:
हैदराबाद के एकीकरण ने भारत की एकता को मजबूत किया और यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने भीतर किसी भी प्रकार की अलगाववादी प्रवृत्ति को स्वीकार नहीं करेगा। - प्रशासनिक मजबूती:
रियासतों के विलय के बाद भारत का प्रशासनिक ढांचा अधिक व्यवस्थित हुआ, जिससे केंद्र सरकार की पकड़ मजबूत हुई। - धर्मनिरपेक्षता की रक्षा:
निज़ाम के इस्लामी राज्य की योजना और रज़ाकारों के अत्याचारों के विरुद्ध कार्यवाही करके भारत ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। - राजनीतिक संकल्प की दृढ़ता:
सरदार पटेल और भारत सरकार ने दिखाया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों और अखंडता के लिए दृढ़ निर्णय लेने में सक्षम है।
आलोचनाएँ और विवाद:
हालाँकि, भारत सरकार की इस सैन्य कार्रवाई की प्रशंसा की गई, फिर भी कुछ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी आलोचना भी हुई। कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसे मुस्लिम विरोधी कार्रवाई के रूप में देखा। लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई भारत की अखंडता और वहाँ की जनता की रक्षा के लिए की गई थी।
निष्कर्ष:
हैदराबाद रियासत का भारत में एकीकरण एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने भारत की राष्ट्रीय एकता, राजनीतिक दृढ़ता और धर्मनिरपेक्षता को मजबूत किया। यह सरदार वल्लभभाई पटेल की कुशल नेतृत्व क्षमता और भारत सरकार की दूरदर्शिता का परिचायक है। इस घटना से यह संदेश स्पष्ट रूप से गया कि स्वतंत्र भारत किसी भी प्रकार की आंतरिक विघटनकारी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगा और एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में अपनी सीमाओं और एकता की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
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