Bharat America aur Russia dono ke saath apne sambandhon ko kaise santulit karta hai
भारत अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने संबंधों को कैसे संतुलित करता है?
परिचय
भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धांत रणनीतिक स्वायत्तता रहा है। यह नीति भारत को विश्व की प्रमुख शक्तियों—अमेरिका और रूस—दोनों के साथ अपने हितों के अनुसार संबंध बनाए रखने की स्वतंत्रता देती है। शीत युद्ध के दौरान भारत रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) का सहयोगी रहा, जबकि अमेरिका से दूरी बनाए रखी। 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद भारत ने अमेरिका से भी संबंधों को मजबूत करना शुरू किया।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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रूस (सोवियत संघ) भारत का पारंपरिक सहयोगी रहा है। 1971 की मैत्री संधि भारत-रूस संबंधों का आधार बनी।
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वहीं अमेरिका से भारत के संबंधों में शीत युद्ध के दौरान दूरी रही, विशेष रूप से पाकिस्तान को अमेरिकी समर्थन के कारण।
आज भारत दोनों देशों से संतुलित संबंध बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है।
2. रणनीतिक स्वायत्तता: भारत की प्राथमिकता
भारत की विदेश नीति का मूल उद्देश्य है स्वतंत्र निर्णय क्षमता:
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भारत किसी भी गुट में स्थायी रूप से शामिल नहीं होता।
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भारत संप्रभुता, राष्ट्रीय हित और संतुलन के आधार पर ही निर्णय लेता है।
यही कारण है कि भारत रूस और अमेरिका दोनों से सहयोग करता है, लेकिन किसी का ‘गुटभक्त’ नहीं बनता।
3. रक्षा सहयोग
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रूस भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता है:
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भारत के लगभग 70% सैन्य उपकरण रूस से प्राप्त होते हैं।
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S-400 मिसाइल प्रणाली रूस से खरीदी गई है, जिस पर अमेरिका ने आपत्ति जताई।
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अमेरिका अब भारत का रणनीतिक रक्षा भागीदार बन गया है:
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LEMOA, COMCASA, BECA जैसे समझौते।
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संयुक्त सैन्य अभ्यास—मालाबार, युद्ध अभ्यास।
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भारत दोनों से रक्षा संबंधों को इस तरह साधता है कि तकनीक अमेरिका से मिले और हथियार रूस से।
4. ऊर्जा क्षेत्र में संतुलन
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रूस से तेल और गैस की आपूर्ति मिलती है। भारत ने पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखा।
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अमेरिका के साथ नवीकरणीय ऊर्जा और परमाणु सहयोग पर काम हो रहा है।
भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए विविधीकरण की रणनीति अपनाता है।
5. व्यापारिक रिश्ते
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भारत-अमेरिका व्यापार लगभग $190 बिलियन के पार पहुँच चुका है। अमेरिका भारत का प्रमुख व्यापारिक भागीदार है।
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भारत-रूस व्यापार अपेक्षाकृत कम है, परंतु रक्षा, ऊर्जा और फार्मा क्षेत्र में बढ़ रहा है।
भारत आर्थिक हितों को प्राथमिकता देता है और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाता है।
6. कूटनीतिक संतुलन
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भारत रूस और अमेरिका दोनों के साथ उच्च स्तरीय संवाद बनाए रखता है:
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रूस के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन, अंतरिक्ष और परमाणु सहयोग।
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अमेरिका के साथ 2+2 वार्ता, क्वाड बैठकें, व्यापार मंच।
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भारत वैश्विक मंचों पर दोनों के साथ जुड़ाव बनाए रखता है—BRICS और SCO रूस के साथ, Quad अमेरिका के साथ।
7. संघर्षों पर भारत का रुख
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रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने तटस्थता बरती, निंदा वाले प्रस्तावों से दूरी बनाई और संवाद का समर्थन किया।
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अमेरिका-चीन तनाव में भारत ने सहयोग तो किया, पर सीधी सैन्य भागीदारी से बचा।
इससे स्पष्ट है कि भारत अपने हितों के आधार पर निर्णय करता है, न कि दबाव में।
8. चुनौतियाँ
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अमेरिका द्वारा CAATSA जैसे कानूनों के तहत रूस से रक्षा खरीद पर रोक की संभावना।
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रूस की चीन से बढ़ती नजदीकी।
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अमेरिका का परिवर्तनशील विदेश नीति दृष्टिकोण।
इन सभी चुनौतियों के बावजूद भारत अपने हितों की रक्षा करते हुए संतुलन बनाए रखता है।
9. बहुपक्षीय मंचों पर सक्रियता
भारत BRICS, SCO, G20, Quad जैसे मंचों पर सक्रिय है, जहां वह अलग-अलग ध्रुवों से संपर्क बनाए रखता है:
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यह रणनीति “मल्टी-अलाइनमेंट” कहलाती है—जहां भारत कई शक्तियों के साथ अलग-अलग सहयोग करता है।
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इससे भारत की वैश्विक भूमिका और संतुलनकारी शक्ति के रूप में छवि मजबूत होती है।
निष्कर्ष
भारत की विदेश नीति आज रणनीतिक परिपक्वता और आत्मनिर्भर सोच का प्रतीक है। भारत ने अमेरिका और रूस दोनों के साथ संतुलन साधने की नीति अपनाई है—रूस से रक्षा और ऊर्जा सहयोग, अमेरिका से व्यापार, तकनीक और वैश्विक मंचों पर साझेदारी। भारत न किसी के साथ पूरी तरह जुड़ता है और न ही किसी से दूर होता है। यह नीति भारत को स्वायत्त, संतुलित और सशक्त बनाती है।