मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ कौन सी हैं? Madhya Pradesh ki pramukh janjaatiyaan kaun si hain

Madhya Pradesh ki pramukh janjaatiyaan kaun si hain

प्रश्न – मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ कौन सी हैं?


परिचय

मध्यप्रदेश, जिसे “भारत का हृदय” कहा जाता है, जनजातीय समुदायों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राज्य है। यहां की लगभग 21% जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) से संबंधित है। ये जनजातियाँ न केवल राज्य की संस्कृति को विविध बनाती हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत के संविधान के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जो सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं तथा जिनकी संस्कृति, भाषा और रहन-सहन की पद्धति विशिष्ट होती है।


मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ


1. गोंड जनजाति

  • स्थिति: मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति।
  • क्षेत्र: मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल।
  • भाषा: गोंडी और हिंदी।
  • आजीविका: कृषि, जंगलों से उत्पाद संग्रह।
  • संस्कृति: गीत-संगीत, लोकनाट्य, ‘बड़ा देव’ की पूजा।
  • त्योहार: केसला यात्रा, पोला, दिवाली।

2. भील जनजाति

  • स्थिति: दूसरी सबसे बड़ी जनजाति।
  • क्षेत्र: झाबुआ, धार, आलीराजपुर, रतलाम, बड़वानी।
  • भाषा: भीली बोली और हिंदी।
  • संस्कृति: तीरंदाजी में पारंगत, ‘भगोरिया’ उत्सव प्रसिद्ध।
  • चित्रकला: डॉट शैली की भील चित्रकला विश्वप्रसिद्ध।

3. बैगा जनजाति

  • स्थिति: विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG)।
  • क्षेत्र: डिंडोरी, मंडला, बालाघाट।
  • जीवनशैली: स्थानांतरित कृषि (बेवर), जंगलों पर निर्भर।
  • संस्कृति: शरीर पर गोदना, प्रकृति से गहरा जुड़ाव।

4. कोरकू जनजाति

  • क्षेत्र: बैतूल, खंडवा, हरदा।
  • भाषा: कोरकू (ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार)।
  • संस्कृति: संयुक्त परिवार, पेड़ों और नदियों की पूजा।
  • चुनौतियाँ: कुपोषण और शिक्षा की कमी।

5. सहरिया जनजाति

  • स्थिति: विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG)।
  • क्षेत्र: श्योपुर, शिवपुरी, गुना, मुरैना।
  • संस्कृति: अर्ध-घुमंतू जीवनशैली, श्रम आधारित जीवन।
  • समस्याएँ: निर्धनता, निम्न साक्षरता।

6. भरिया जनजाति

  • क्षेत्र: छिंदवाड़ा (विशेष रूप से पातालकोट)।
  • विशेषता: हर्बल चिकित्सा की पारंपरिक जानकारी।
  • आजीविका: कृषि, औषधीय पौधों का संग्रह।

7. कोल जनजाति

  • क्षेत्र: रीवा, सतना, सीधी।
  • संस्कृति: हनुमान और भैरव की पूजा, कुल परंपराएँ।
  • भाषा: कोली भाषा और हिंदी।

8. पारधी जनजाति

  • क्षेत्र: भोपाल, सागर, रायसेन।
  • पूर्व जीवनशैली: शिकार; अब मजदूरी, कारीगरी।
  • समस्या: सामाजिक कलंक और शिक्षा की कमी।

9. अगरिया जनजाति

  • क्षेत्र: सिंगरौली, सीधी, रीवा।
  • पूर्व व्यवसाय: लोहा गलाना।
  • अब: कृषि और श्रम कार्य।

सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति

  • शिक्षा: साक्षरता दर कम है, विशेष रूप से महिलाओं में।
  • स्वास्थ्य: सुविधाओं की कमी, शिशु और मातृ मृत्यु दर अधिक।
  • आजीविका: अधिकांश लोग मनरेगा या वन उत्पादों पर निर्भर हैं।
  • भूमि और विस्थापन: विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन।
  • सरकारी योजनाएँ: पेसा अधिनियम, वन धन योजना, छात्रावास आदि।

संस्कृतिक महत्व

जनजातियाँ पारंपरिक ज्ञान, लोककला, लोकगीत, औषधीय पौधों की जानकारी और प्राकृतिक जीवनशैली की संरक्षक हैं। करमा, सैला जैसे लोकनृत्य, पर्व-त्योहार और पारंपरिक रीति-रिवाज उनकी पहचान हैं।


निष्कर्ष

मध्यप्रदेश की जनजातियाँ राज्य की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक संरचना का अभिन्न अंग हैं। इनकी संस्कृति, जीवनशैली और परंपराएं अद्वितीय हैं। आज इनके सामने कई चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान सरकार और समाज की संयुक्त भागीदारी से संभव है। समावेशी विकास ही इन जनजातियों के भविष्य को सुरक्षित और सशक्त बना सकता है।


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