प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों पर प्रकाश डालिए | Prachin Bharatiya Vishwavidyalayon par Prakash Daliye

Prachin Bharatiya Vishwavidyalayon par Prakash Daliye

प्रश्न – प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों पर प्रकाश डालिए

विषय: इतिहास – भारतीय जीवन परंपरा | पेपर – I | विषय कोड – A3-HIST 1D

Table of Contents


✦ भूमिका (Introduction):

भारत को प्राचीन काल से ही “विश्वगुरु” कहा गया है। यहाँ की शिक्षा व्यवस्था न केवल आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों से युक्त थी, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत विश्लेषण पर भी आधारित थी। वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक भारत में अनेक विश्वविद्यालय स्थापित हुए जो विश्व के प्रथम और सबसे विकसित शिक्षा केंद्रों में गिने जाते हैं। इन विश्वविद्यालयों ने वैश्विक स्तर पर भारत की विद्या, संस्कृति और चिंतन परंपरा को प्रसिद्धि दिलाई।
इन विश्वविद्यालयों में नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी, ओदंतपुरी, सोमपुरा और जगद्दल प्रमुख थे। इन शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गहनता, विद्वानों का स्तर, पुस्तकालयों की विशालता और छात्रों की संख्या आज भी प्रेरणास्त्रोत है।


✦ 1. नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University):

  • स्थान: राजगीर (बिहार) के पास स्थित।
  • स्थापना: लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा।

✧ विशेषताएँ:

  • नालंदा विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था।
  • यहाँ लगभग 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक अध्ययन और अध्यापन करते थे।
  • यह एक बहु-विषयक विश्वविद्यालय था जहाँ दर्शन, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य, बौद्ध धर्म इत्यादि की शिक्षा दी जाती थी।
  • विद्यार्थियों का चयन एक कठोर प्रवेश परीक्षा द्वारा होता था।
  • यहाँ का विशाल पुस्तकालय “धर्मगंज” तीन भवनों – रत्नसागर, रत्नरंजक और रत्नोदधी में फैला हुआ था, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहित थे। इसकी ऊँचाई 9-12 मंजिल तक थी।

✧ पतन:

  • 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगाकर नष्ट कर दिया। कहा जाता है कि पुस्तकालय में इतनी पुस्तकें थीं कि वह महीनों तक जलता रहा

✦ 2. तक्षशिला विश्वविद्यालय (Takshashila University):

  • स्थान: आज के पाकिस्तान के रावलपिंडी के पास (पुरातन भारत में गांधार क्षेत्र)।
  • स्थापना: 7वीं शताब्दी ईसा-पूर्व के आसपास, यह विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता है।

✧ विशेषताएँ:

  • यहाँ 18 से अधिक विषयों में शिक्षा दी जाती थी, जिनमें चिकित्सा, सैन्य शास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, खगोलशास्त्र, तर्कशास्त्र, व्याकरण, संगीत आदि प्रमुख थे।
  • इस विश्वविद्यालय में प्रवेश की कोई न्यूनतम आयु सीमा नहीं थी।
  • आचार्य चाणक्य (कौटिल्य), वैद्य चरक, और व्याकरणाचार्य पाणिनि जैसे महापुरुष यहीं के विद्वान थे।
  • छात्रों को व्यक्तिगत रूप से आचार्य के साथ अध्ययन करना होता था – यह गुरुकुल परंपरा की निरंतरता थी।

✦ 3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय (Vikramshila University):

  • स्थान: बिहार के भागलपुर ज़िले के अंतर्गत अंतिचक नामक गाँव में।
  • स्थापना: 8वीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा।

✧ विशेषताएँ:

  • यह विश्वविद्यालय मुख्य रूप से महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।
  • यहाँ 6 प्रवेश द्वार थे, जिन पर विद्वान रक्षक छात्रों से प्रश्न पूछकर उनकी योग्यता का मूल्यांकन करते थे।
  • पाठ्यक्रम में शास्त्रार्थ, योग, तंत्र, दर्शन, वेदांत और तर्कशास्त्र जैसे विषय सम्मिलित थे।
  • लगभग 100 शिक्षक और 1,000 छात्र यहाँ अध्ययनरत थे।

✦ 4. वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi University):

  • स्थान: गुजरात राज्य में स्थित वल्लभीनगर।
  • समय: 6वीं से 8वीं शताब्दी के मध्य।

✧ विशेषताएँ:

  • यह विश्वविद्यालय जैन और बौद्ध धर्म दोनों की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।
  • शिक्षा के विषयों में धर्मशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, काव्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, और व्याकरण सम्मिलित थे।
  • यहाँ लगभग 6,000 विद्यार्थी और 1,000 शिक्षक कार्यरत थे।
  • वल्लभी को “पश्चिम का नालंदा” भी कहा जाता था।

✦ 5. ओदंतपुरी, सोमपुरा और जगद्दल विश्वविद्यालय:

  • ये विश्वविद्यालय भी पाल वंश द्वारा 8वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य बिहार और बंगाल में स्थापित किए गए थे।

✧ विशेषताएँ:

  • बौद्ध धर्म के महायान शाखा के प्रमुख अध्ययन केंद्र थे।
  • ओदंतपुरी: नालंदा के समीप पटना ज़िले में।
  • सोमपुरा: वर्तमान बांग्लादेश के नायागंज जिले में स्थित।
  • जगद्दल: बौद्ध धर्म के बौद्धिक चिंतन और बहस के लिए प्रसिद्ध।

✦ प्राचीन विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँ:

1. गुरुकुल प्रणाली:

  • अधिकांश शिक्षा गुरुओं के अधीन रहकर गुरुकुलों में होती थी। छात्र शिक्षा के साथ-साथ सेवाभाव, अनुशासन और नैतिक मूल्यों की भी शिक्षा प्राप्त करते थे।

2. शिक्षा नि:शुल्क थी:

  • छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता था। शिक्षा का व्यय राजा, धनी नागरिक, व व्यवसायी वर्ग वहन करते थे।

3. शिक्षा का उद्देश्य:

  • जीवन का समग्र विकास – धार्मिक, बौद्धिक, नैतिक और व्यावहारिक पक्षों को विकसित करना।

4. शिक्षा का स्तर:

  • अत्यंत उच्च, शोधपरक, और तर्कसम्मत। किसी भी विषय की गहनता से व्याख्या की जाती थी।

5. विद्यार्थी जीवन:

  • छात्रों का जीवन अनुशासित, तपस्वी और संयम से भरा होता था।

✦ अंतरराष्ट्रीय महत्त्व:

  • चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, श्रीलंका, नेपाल आदि देशों के छात्र यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
  • फाह्यान, ह्वेनसांग जैसे चीनी यात्री यहाँ की शिक्षा प्रणाली से अत्यंत प्रभावित थे।
  • ह्वेनसांग स्वयं नालंदा में 15 वर्ष तक अध्ययन और शोध कार्य करते रहे।

✦ इन विश्वविद्यालयों का पतन:

  • मुस्लिम आक्रमणों और विदेशी आक्रांताओं के कारण ये विश्वविद्यालय धीरे-धीरे नष्ट हो गए।
  • नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे केंद्र बख्तियार खिलजी जैसे आक्रांताओं की क्रूरता के कारण जलकर भस्म हो गए।

✦ निष्कर्ष:

प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालय भारत की शिक्षा, संस्कृति और दर्शन की गौरवशाली परंपरा के प्रतीक हैं। ये न केवल शिक्षा केंद्र थे, बल्कि संवाद, बहस, शोध और वैश्विक ज्ञान के स्रोत भी थे। आज जब हम आधुनिक शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने की बात करते हैं, तो प्राचीन भारत की ये विश्वविद्यालय परंपराएँ एक प्रेरणास्रोत बन सकती हैं।

भारत सरकार द्वारा आज नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों का पुनरुद्धार किया जा रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हम अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।


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