भित्ति चित्रकला पर प्रकाश डालिए। Bhitti Chitrakala par prakash daliye

Bhitti Chitrakala par prakash daliye

Explain the Mural Painting


प्रश्न – भित्ति चित्रकला पर प्रकाश डालिए

(B.A. तृतीय वर्ष – इतिहास, भारतीय जीवन परंपरा | पेपर – I | विषय कोड: A3-HIST 1D)


प्रस्तावना:

भारतीय कला की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, जिसमें चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, नृत्य और संगीत जैसी कलाएँ सम्मिलित हैं। इन कलाओं में भित्ति चित्रकला (Mural Painting) का एक विशिष्ट स्थान है। ‘भित्ति’ शब्द संस्कृत भाषा का है, जिसका अर्थ ‘दीवार’ होता है, और ‘चित्रकला’ का अर्थ है – रंगों और रेखाओं द्वारा किसी विचार या भाव को दर्शाने की कला। अतः भित्ति चित्रकला का आशय है – दीवारों पर बनाए गए चित्र, जो न केवल दृश्य सौंदर्य प्रदान करते हैं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को भी दर्शाते हैं।


भित्ति चित्रकला का इतिहास:

भारत में भित्ति चित्रकला की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। सिंधु घाटी सभ्यता (3000 ई.पू.) में मिले अवशेषों में दीवारों को रंगने के प्रमाण मिले हैं। वैदिक और उत्तरवैदिक काल में भी घरों और पूजा स्थलों की दीवारों पर प्रतीकात्मक चित्र बनाए जाते थे।

मौर्य, गुप्त, वर्धन और पाल शासकों के काल में भित्ति चित्रकला को राज्याश्रय प्राप्त हुआ। विशेषकर गुफा मंदिरों की दीवारों को चित्रों से सजाया गया, जो आज भी अजंता, एलोरा, बाघ, सीतानवसल, बड़ामुल्ला आदि स्थानों पर देखे जा सकते हैं।


भित्ति चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ:

  1. स्थायित्व (Durability):
    भित्ति चित्रों को चूने और मिट्टी के लेप पर प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता था, जिससे वे सदियों तक सुरक्षित रहते थे।
  2. धार्मिक विषयवस्तु (Religious Themes):
    अधिकांश चित्रों में बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म से संबंधित प्रसंग जैसे बुद्ध जीवन, जातक कथाएँ, देवी-देवताओं की कथाएँ इत्यादि चित्रित होते थे।
  3. यथार्थ चित्रण (Realistic Depiction):
    इनमें दैनिक जीवन, सामाजिक रीति-रिवाज, वस्त्र, आभूषण और भावनाओं का सजीव चित्रण होता है।
  4. प्राकृतिक रंगों का उपयोग (Use of Natural Colors):
    गेरू, हल्दी, नीला पत्थर, सिंदूर, पौधों की छाल से बने रंगों का प्रयोग होता था।
  5. गहराई और सौंदर्यबोध (Artistic Depth):
    रंगों की छाया, रेखाओं की सजीवता और भावों की गहराई इन चित्रों को अद्भुत बनाती है।

प्रसिद्ध भित्तिचित्र स्थल और उनका महत्व:

1. अजंता की गुफाएँ (महाराष्ट्र):

  • यह स्थल बौद्ध धर्म से संबंधित भित्तिचित्रों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
  • चित्रों में बुद्ध के जीवन प्रसंग, जातक कथाएँ और तत्कालीन समाज का सुंदर चित्रण किया गया है।
  • शैली – फ्रेस्को तकनीक, रंग संयोजन उत्कृष्ट और भावनात्मक प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली।

2. बाघ की गुफाएँ (मध्यप्रदेश):

  • यहाँ के चित्र भी बौद्ध विषयों पर आधारित हैं और अजंता की शैली से मिलते-जुलते हैं।
  • इन चित्रों में अधिक नाटकीयता और रंगों की प्रचुरता है।
  • प्राकृतिक परिवेश और मानव आकृतियों का प्रभावशाली चित्रण मिलता है।

3. सीतानवसल (तमिलनाडु):

  • यह स्थल जैन भित्तिचित्र कला के लिए प्रसिद्ध है।
  • चित्रों में ध्यानरत साधु, कमल सरोवर, और जैन तत्त्वों का सुंदर चित्रण मिलता है।
  • दीवारों और छतों पर चित्रित दृश्य अत्यंत मनोहारी हैं।

4. एलोरा की गुफाएँ (महाराष्ट्र):

  • यहाँ हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों से संबंधित चित्र मिलते हैं।
  • विशेषकर कैलाश मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र और महाकाव्य आधारित दृश्य चित्रित हैं।

5. कोणार्क और पुरी (ओडिशा):

  • सूर्य मंदिर और जगन्नाथ मंदिर की दीवारों पर पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं, रथों और जीवन प्रसंगों का भित्तिचित्रण किया गया है।

भित्ति चित्रकला की प्रमुख शैलियाँ:

शैली प्रमुख क्षेत्र विशेषताएँ
फ्रेस्को शैली अजंता, बाघ गीली दीवार पर चित्र बनाना
राजस्थानी शैली शेखावाटी, बीकानेर रंगों की बहुलता, लोककथाएँ
केरल की मंदिर शैली केरल देवी-देवताओं के चित्र, जीवंत रंग
मध्य भारतीय शैली बाघ, सतना मजबूत रेखाएँ, सजीव भाव
आलपन व लेखन शैली बंगाल प्रतीकात्मक चित्रण

भित्तिचित्रों में प्रयुक्त सामग्री और तकनीक:

  1. रंग:
    • गेरू, पिसा हुआ पत्थर, खड़िया, सिंदूर, पौधों की छाल, हल्दी, कोयला आदि।
  2. ब्रश और उपकरण:
    • बांस की कलम, लकड़ी के ब्रश, रेशों से बने झाड़ू।
  3. पृष्ठभूमि तैयारी:
    • दीवार को चूना, गोबर, मिट्टी से लेपित कर चिकना बनाया जाता था।
  4. तकनीक:
    • पहले आकृति की रूपरेखा बनाई जाती थी, फिर प्राकृतिक रंगों से चित्रित किया जाता था।

भित्ति चित्रकला का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व:

  • धार्मिकता:
    चित्रों के माध्यम से लोगों को धर्म, नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती थी।
  • समाज चित्रण:
    तत्कालीन समाज की स्थिति, पहनावा, आभूषण, रीति-रिवाज, लोक जीवन का सजीव दस्तावेज।
  • इतिहास का स्रोत:
    जिन घटनाओं और पात्रों के लिखित प्रमाण नहीं मिलते, वहाँ ये चित्र ऐतिहासिक स्रोत बनते हैं।
  • कला का प्रचार:
    इन चित्रों के माध्यम से कला की अभिव्यक्ति गाँव-गाँव और जन-जन तक पहुँची।

भित्ति चित्रकला की वर्तमान स्थिति और संरक्षण की आवश्यकता:

आज आधुनिक तकनीक और डिज़ाइनों के बावजूद भी भित्तिचित्रों का आकर्षण बना हुआ है। परंतु समय के साथ यह कला नष्ट होती जा रही है, जिसे संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता है।

सरकार और विभिन्न संस्थाएँ अब इन भित्तिचित्र स्थलों के संरक्षण हेतु प्रयास कर रही हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), संस्कृति मंत्रालय और यूनेस्को जैसे संगठन इसके संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।


निष्कर्ष:

भित्ति चित्रकला न केवल भारत की कलात्मक चेतना का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों, धार्मिक आस्थाओं और ऐतिहासिक पहचान का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह चित्रकला केवल सौंदर्य का माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास, एक दर्शन और एक परंपरा है, जो भारत के गौरवशाली अतीत की झलक आज भी प्रस्तुत करती है।

इसलिए यह आवश्यक है कि हम इस अनमोल विरासत का न केवल अध्ययन करें, बल्कि इसके संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए भी प्रयास करें।


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