औपनिवेशिक प्रशासनिक इकाइयों का स्वतंत्र भारत के राज्य–निर्माण में क्या योगदान रहा? Aupniveshik prashaasnik ikaaiyon ka svatantra Bharat ke rajya–nirmaan mein kya yogdaan raha?

बी.ए. तृतीय वर्ष (2024–25) | विषय: राजनीति विज्ञान (भारत में राज्य-राजनीति) | पेपर–II | विषय कोड: A3-POSC 2T
प्रश्न: औपनिवेशिक प्रशासनिक इकाइयों का स्वतंत्र भारत के राज्य–निर्माण में क्या योगदान रहा?
उत्तर:

भारत में औपनिवेशिक शासन का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसने भारतीय राजनीति, प्रशासनिक व्यवस्था और राज्य की संरचना पर गहरा प्रभाव डाला। जब भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, तब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी – एक मजबूत, एकीकृत और व्यवहारिक राज्य संरचना की स्थापना करना। इस संदर्भ में, औपनिवेशिक प्रशासनिक इकाइयों ने स्वतंत्र भारत के राज्य–निर्माण में एक मजबूत आधार प्रदान किया।

1. औपनिवेशिक प्रशासनिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि:

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया गया था –

  • ब्रिटिश भारत (Direct Rule)
  • देशी रियासतें या प्रिंसली स्टेट्स (Indirect Rule)

ब्रिटिश भारत में विभिन्न प्रांत जैसे बंगाल, मद्रास, बॉम्बे, पंजाब, बिहार, असम, संयुक्त प्रांत (UP), आदि थे। ये सभी सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन थे। इनकी प्रशासनिक व्यवस्था अत्यंत संगठित थी – जिसमें कानून व्यवस्था, राजस्व प्रणाली, न्यायिक संस्थाएं, आदि पूरी तरह से कार्यरत थे।

वहीं देशी रियासतें, राजाओं और नवाबों द्वारा शासित थीं, लेकिन वे ब्रिटिश सरकार के अधीन मानी जाती थीं। इनके ऊपर ब्रिटिश रेज़िडेंट होते थे, और विदेश नीति व रक्षा जैसी महत्वपूर्ण शक्तियाँ ब्रिटिशों के पास ही थीं।

2. औपनिवेशिक इकाइयों का राज्य-निर्माण में योगदान:

(क) प्रशासनिक ढांचे की नींव:

ब्रिटिश भारत की प्रांत व्यवस्था, नौकरशाही, पुलिस, न्यायपालिका और कर प्रणाली – इन सभी संस्थाओं ने स्वतंत्र भारत को एक कार्यशील प्रशासनिक ढांचा प्रदान किया। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने इन्हीं संस्थाओं में संशोधन कर उन्हें लोकतांत्रिक और संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया।

(ख) प्रांतीय सीमाएं – राज्य गठन का आधार:

ब्रिटिश भारत के प्रांत, जैसे बंगाल, बॉम्बे, मद्रास आदि, स्वतंत्र भारत के शुरुआती राज्यों के रूप में अपनाए गए। हालांकि बाद में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ, लेकिन प्रारंभिक नक्शा औपनिवेशिक प्रांतों पर ही आधारित था।

(ग) केंद्र–राज्य संबंधों की नींव:

1935 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) ने केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों के वितरण की जो व्यवस्था की थी, उसी को भारत के संविधान में अपनाया गया और इसे और अधिक लोकतांत्रिक और संघीय रूप दिया गया।

(घ) राजस्व व न्यायिक प्रणाली:

ब्रिटिश शासन में स्थापित राजस्व प्रणाली (जैसे ज़मीन का बंदोबस्त, मालगुज़ारी, आदि) तथा न्यायालयों (जैसे जिला अदालत, हाईकोर्ट) ने स्वतंत्र भारत में शासन को सुगम बनाने में सहायता की। इन्हीं ढाँचों को आधार मानकर भारत में प्रशासनिक स्थिरता प्राप्त की गई।

3. देशी रियासतों का विलय – एकीकरण की ऐतिहासिक प्रक्रिया:

ब्रिटिश भारत के अतिरिक्त लगभग 565 देशी रियासतें थीं, जो स्वतंत्र भारत का हिस्सा नहीं थीं। सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन के प्रयासों से इन रियासतों को भारत में मिलाया गया। यह कार्य ब्रिटिश शासन की संस्थागत व्यवस्था और उनके द्वारा नियुक्त राज्य के प्रतिनिधियों (राज्यपालों, रेज़िडेंट्स) के साथ संपर्क के कारण आसान हुआ।

विशेष उदाहरण:

  • हैदराबाद – ‘ऑपरेशन पोलो’ के माध्यम से विलय
  • जूनागढ़ – जनमत संग्रह द्वारा भारत में शामिल
  • काश्मीर – विशेष शर्तों के तहत विलय (Instrument of Accession)

ब्रिटिश शासन द्वारा विकसित राजनीतिक एकीकरण की अवधारणा ने इन सभी रियासतों को भारत में शामिल करने में आधारभूत भूमिका निभाई।

4. भाषायी और सांस्कृतिक विविधता का प्रशासनिक अनुभव:

ब्रिटिश शासन ने भारत की विविधता को समझने और उसे प्रशासन में शामिल करने का प्रयास किया। जैसे असम और बंगाल की भिन्न भाषा और संस्कृति को पहचानते हुए अलग प्रशासनिक इकाइयाँ बनाईं गईं। इस अनुभव ने स्वतंत्र भारत को भाषाई आधार पर राज्य पुनर्गठन की दिशा में सोचने की प्रेरणा दी।

5. प्रशासनिक प्रशिक्षण और नौकरशाही:

ब्रिटिश शासन ने ICS (Indian Civil Services) जैसी संस्थाओं के माध्यम से एक प्रशिक्षित नौकरशाही तैयार की थी, जो स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में परिवर्तित हुई। यह नव-निर्माण की रीढ़ बनी।

6. एक समान न्यायिक प्रणाली:

ब्रिटिश शासन ने भारत में कॉमन लॉ सिस्टम (Common Law System) की शुरुआत की, जो आज भी भारतीय न्यायिक प्रणाली का आधार है। यह राज्य स्तर पर न्याय की एकरूपता और संतुलन लाने में सहायक रही।


निष्कर्ष:

स्वतंत्र भारत के राज्य–निर्माण की प्रक्रिया में औपनिवेशिक प्रशासनिक इकाइयों ने एक मजबूत आधार प्रदान किया। जहाँ एक ओर औपनिवेशिक शासन ने भारत को बँटवारे और विभाजन की पीड़ा दी, वहीं दूसरी ओर उन्होंने एक संगठित प्रशासनिक ढाँचा, राजनीतिक संरचना और कार्यात्मक संस्थाएं स्थापित कीं, जिनका स्वतंत्र भारत ने न केवल उपयोग किया, बल्कि उन्हें संवैधानिक रूप देकर लोकतांत्रिक प्रणाली में ढाल दिया।

इस प्रकार, औपनिवेशिक प्रशासनिक इकाइयों का योगदान भारतीय राज्य-निर्माण में ऐतिहासिक, राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। भारत ने अपने अतीत से सीख लेकर एक नया, स्वतंत्र और मजबूत राष्ट्र निर्माण किया, जिसमें औपनिवेशिक ढाँचे को संशोधित कर राष्ट्रहित में उपयोग किया गया।


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