अंतर–राज्यीय परिषद का उद्देश्य क्या है? Antar–raajyey parishad ka uddeshya kya hai?

बी.ए. तृतीय वर्ष (सत्र 2024–25)
विषय – राज्य राजनीति भारत में (State Politics in India), पेपर – II
विषय कोड – A3-POSC 2T
प्रश्न – अंतर-राज्यीय परिषद का उद्देश्य क्या है?
उत्तर –

प्रस्तावना:

भारत एक संघात्मक गणराज्य है जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है। हालांकि संविधान में केंद्र और राज्यों के अधिकार स्पष्ट रूप से विभाजित हैं, लेकिन समय-समय पर उनके बीच टकराव और विवाद उत्पन्न होते रहते हैं। इस प्रकार, केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय बनाए रखने और आपसी समस्याओं का समाधान करने हेतु एक ऐसा संस्थागत ढाँचा होना आवश्यक था जो संवाद और सहयोग को बढ़ावा दे। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council) की स्थापना की गई।


अंतर–राज्यीय परिषद की पृष्ठभूमि:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 263 (Article 263) के तहत यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति, यदि आवश्यक समझें, तो एक ऐसी परिषद की स्थापना कर सकते हैं जो विभिन्न राज्यों के बीच या केंद्र एवं राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देने का कार्य करे।

हालाँकि यह प्रावधान संविधान में प्रारंभ से ही मौजूद था, लेकिन इसकी व्यावहारिक स्थापना 1990 में सरदार सरन सिंह आयोग (Sarkaria Commission) की सिफारिशों के आधार पर हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 28 मई 1990 को इस परिषद की स्थापना की।


अंतर–राज्यीय परिषद के गठन की संरचना:

  1. प्रधानमंत्री – अध्यक्ष
  2. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री
  3. केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री (जहां विधानसभा हो)
  4. केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासक/लेफ्टिनेंट गवर्नर (जहां विधानसभा नहीं है)
  5. केंद्रीय मंत्रिपरिषद के कुछ सदस्य
  6. गृह मंत्री – स्थायी निमंत्रित सदस्य
  7. नीति आयोग के उपाध्यक्ष – विशेष निमंत्रण के आधार पर

इस परिषद की बैठकें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होती हैं और यह परिषद नियमित अंतराल पर अपनी बैठकें आयोजित करती है।


अंतर–राज्यीय परिषद के उद्देश्य:

अंतर-राज्यीय परिषद का मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना, नीति निर्धारण में सहयोग को बढ़ाना, तथा संघीय ढाँचे को मजबूती प्रदान करना है। इसके कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:

1. राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना

राज्यों के आपसी विवाद जैसे सीमा विवाद, जल विवाद, भाषा विवाद आदि का समाधान करने के लिए यह परिषद संवाद और सहमति का मंच प्रदान करती है।

2. केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर तालमेल बनाना

नीति निर्माण, आर्थिक योजना, और सामाजिक योजनाओं के कार्यान्वयन में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय आवश्यक होता है। यह परिषद उन मामलों पर चर्चा कर सहयोग को मजबूत करती है।

3. संविधान के प्रावधानों के क्रियान्वयन में सहयोग

संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों और जिम्मेदारियों को सही प्रकार से लागू करने हेतु यह परिषद एक मार्गदर्शक संस्था के रूप में कार्य करती है।

4. राजनीतिक और प्रशासनिक समन्वय

राज्यों में राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक सुधार, और सुशासन को सुनिश्चित करने हेतु यह परिषद सुझाव देती है और विभिन्न स्तरों पर समन्वय कायम करती है।

5. विकास और योजना से जुड़े मसलों पर संवाद

राष्ट्रीय विकास योजनाओं और राज्यों की आवश्यकताओं में संतुलन बनाए रखने के लिए परिषद नीति आयोग और अन्य विभागों से मिलकर काम करती है।


Sarkaria Commission की सिफारिशें और परिषद की भूमिका:

सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया था कि अंतर–राज्यीय परिषद को संवैधानिक रूप से अधिक प्रभावशाली बनाया जाए और इसे नियमित रूप से कार्य करने वाली संस्था का दर्जा दिया जाए।

इसके सुझावों में प्रमुख थे:

  • परिषद की नियमित बैठकें आयोजित हों
  • राज्यों को नीतिगत निर्णयों में समान भागीदारी दी जाए
  • केंद्र–राज्य संबंधों में पारदर्शिता हो
  • विवादों के समाधान के लिए यह मंच प्राथमिक हो

इन सिफारिशों के आधार पर 1990 में परिषद की स्थापना की गई और इसे एक सलाहकार निकाय का दर्जा दिया गया।


अंतर–राज्यीय परिषद की उपलब्धियाँ:

  1. संविधान से जुड़े मुद्दों पर संवाद
    कई संवेदनशील मुद्दों जैसे भाषाई पहचान, कानून व्यवस्था, अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग आदि पर खुले मंच पर चर्चा की गई।
  2. जल विवादों का समाधान
    कावेरी जल विवाद, सतलुज-यमुना लिंक आदि जैसे जल विवादों पर परिषद ने गंभीरता से विमर्श किया।
  3. संघीय ढांचे को मजबूती
    यह परिषद भारत में संघीय भावना को मज़बूत करने का कार्य करती है और राज्यों को अपनी बात कहने का अवसर देती है।
  4. नीति और कार्यक्रमों पर एकमत
    कई बार केंद्र की योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए राज्यों की सलाह के आधार पर बदलाव किए गए।

सीमाएँ और आलोचना:

  • परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं।
  • इसकी बैठकें अनियमित रही हैं।
  • राज्यों की शिकायतें रहती हैं कि उन्हें समान महत्व नहीं दिया जाता।
  • कई बार राजनीतिक कारणों से इसके निर्णयों की उपेक्षा की जाती है।

हालिया सुधार और प्रासंगिकता:

वर्तमान समय में जब राज्यों की आर्थिक और सामाजिक भूमिका बढ़ रही है, ऐसे में परिषद की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो गई है। नीति आयोग और जीएसटी परिषद जैसे अन्य संघीय मंचों के साथ मिलकर यह परिषद एक सहकारी संघवाद (cooperative federalism) की भावना को मजबूत करती है।

2020 के बाद COVID-19 संकट, केंद्र-राज्य के बीच वैक्सीन वितरण, स्वास्थ्य नीति, कृषि कानूनों जैसे विवादों पर विचार-विमर्श की आवश्यकता फिर से परिषद की प्रासंगिकता को रेखांकित करती है।


निष्कर्ष:

अंतर–राज्यीय परिषद भारतीय संघीय व्यवस्था का एक अनिवार्य स्तंभ है, जो केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय, सहयोग और संवाद को सुनिश्चित करता है। यदि इसे और सशक्त बनाया जाए, इसकी बैठकों को नियमित किया जाए तथा इसकी सिफारिशों को गंभीरता से लिया जाए, तो यह संस्था भारत के लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे को और अधिक मज़बूत बना सकती है।


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