सार्वजनिक कल्याणकारी योजनाओं की सफलता को लागू करने में राज्यों की क्या भूमिका होती है?
(Bachelor of Arts – Third Year, Session 2024–25 | Subject: Political Science | Paper – II | Subject Code: A3-POSC 2T)
प्रस्तावना:
भारत एक संघात्मक गणराज्य है, जहाँ सत्ता का वितरण केंद्र और राज्यों के बीच संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है। सामाजिक न्याय और आर्थिक समावेशन को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों मिलकर सार्वजनिक कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण एवं कार्यान्वयन करते हैं। हालांकि, इन योजनाओं की वास्तविक सफलता राज्य सरकारों पर बहुत हद तक निर्भर करती है क्योंकि कार्यान्वयन, निगरानी और अंतिम लाभार्थियों तक सेवा पहुंचाने की ज़िम्मेदारी अधिकतर राज्यों पर ही होती है।
सार्वजनिक कल्याणकारी योजनाओं का उद्देश्य:
इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर, पिछड़े, आर्थिक रूप से वंचित एवं जरूरतमंद वर्गों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करना है। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, रोजगार, आवास, सामाजिक सुरक्षा आदि से संबंधित योजनाएं आती हैं।
राज्यों की भूमिका:
1. नीतियों का अनुकूलन (Adaptation to Local Context):
हर राज्य की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक स्थिति अलग होती है। राज्य सरकारें केंद्र द्वारा बनाई गई योजनाओं को अपने राज्य की ज़रूरतों के अनुसार ढालती हैं, जिससे योजनाएं अधिक प्रभावी होती हैं।
2. वित्तीय योगदान और संसाधन प्रबंधन:
अधिकांश कल्याणकारी योजनाएं केंद्र और राज्यों के बीच साझा वित्तीय सहयोग (centrally sponsored schemes) के अंतर्गत आती हैं। राज्यों को योजना के हिस्से के रूप में निधि मुहैया करानी होती है और उस राशि का प्रबंधन भी करना होता है।
3. प्रशासनिक संरचना और कार्यान्वयन तंत्र:
राज्य सरकारें योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए अपने विभागीय ढांचे, अधिकारियों, पंचायतों, नगर निकायों और अन्य स्थानीय संस्थाओं का प्रयोग करती हैं। जैसे – शिक्षा योजना के लिए राज्य शिक्षा विभाग, आंगनवाड़ी सेवाओं के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग इत्यादि।
4. स्थानीय निकायों की भूमिका का सशक्तिकरण:
राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को योजनाओं के कार्यान्वयन में शामिल कर स्थानीय लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान करती हैं। इससे योजना जमीनी स्तर पर पहुँचती है।
5. निगरानी और मूल्यांकन (Monitoring and Evaluation):
राज्य सरकारें अपने स्तर पर योजनाओं की प्रगति की निगरानी, निरीक्षण, सामाजिक अंकेक्षण (social audit) और मूल्यांकन करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि योजनाएं ठीक से लागू हो रही हैं या नहीं।
6. जनजागरूकता और लाभार्थी पहचान:
राज्य स्तर पर योजनाओं को लेकर प्रचार-प्रसार, जागरूकता अभियान और सही लाभार्थियों की पहचान बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है। अगर यह सही ढंग से न हो, तो योजनाएं केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाती हैं।
7. डिजिटल तकनीक और ई-गवर्नेंस का प्रयोग:
राज्य सरकारें योजनाओं के पारदर्शी क्रियान्वयन हेतु डिजिटल प्लेटफॉर्म, DBT (Direct Benefit Transfer), मोबाइल ऐप्स आदि का प्रयोग करती हैं जिससे भ्रष्टाचार कम हो और लाभ सीधे पात्र नागरिकों को मिले।
कुछ प्रमुख उदाहरण:
(1) मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme):
यह केंद्र प्रायोजित योजना है लेकिन इसका प्रभावी संचालन पूरी तरह राज्य सरकारों के जिम्मे है। विभिन्न राज्यों ने इसमें नवाचार किए हैं जैसे तमिलनाडु में विशेष मेन्यू, बिहार में माता समिति की निगरानी, आदि।
(2) राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM):
राज्यों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी को बेहतर करने के लिए NHM के अंतर्गत PHC, CHC और जिला अस्पतालों को सशक्त किया गया है। केरल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने इसमें अच्छा प्रदर्शन किया है।
(3) मनरेगा (MGNREGA):
100 दिन का रोजगार देने वाली यह योजना पंचायत स्तर पर राज्यों के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा लागू की जाती है। जिन राज्यों में सामाजिक अंकेक्षण और निगरानी सही ढंग से की गई, वहाँ योजना अधिक सफल रही।
राज्यों के समक्ष चुनौतियाँ:
- भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन:
नीचे के स्तर पर भ्रष्टाचार और संसाधनों का दुरुपयोग योजना की सफलता को बाधित करता है। - कर्मचारियों की कमी:
प्रशासनिक कर्मचारियों की संख्या और प्रशिक्षण की कमी योजना के क्रियान्वयन में अड़चन बनती है। - राजनीतिक हस्तक्षेप:
कई बार योजनाओं को राजनैतिक लाभ के लिए तोड़ा-मरोड़ा जाता है जिससे मूल उद्देश्य भटक जाता है। - वित्तीय सीमाएँ:
राज्यों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण योजनाओं का विस्तार सीमित हो जाता है। - सूचना और संचार की कमी:
कई बार लाभार्थियों को योजनाओं की जानकारी नहीं होती जिससे वे लाभ नहीं उठा पाते।
समाधान और सुधार की दिशा में सुझाव:
- पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दिया जाए।
- स्थानीय निकायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
- जनभागीदारी और सामाजिक अंकेक्षण को अनिवार्य किया जाए।
- राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता और लचीलापन दिया जाए।
- कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
निष्कर्ष:
सार्वजनिक कल्याणकारी योजनाओं की सफलता केवल केंद्र सरकार की नीति-निर्माण क्षमता पर नहीं बल्कि राज्य सरकारों की नीतियों को लागू करने की इच्छाशक्ति, कार्यक्षमता और प्रशासनिक दक्षता पर निर्भर करती है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में राज्यों की भूमिका निर्णायक है, क्योंकि वही ज़मीनी हकीकत से सीधे जुड़े होते हैं। यदि राज्यों द्वारा योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए, तो सामाजिक-आर्थिक न्याय और विकास का सपना साकार हो सकता है।
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