औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? Audyogikaran se aap kya samajhte hain

Audyogikaran se aap kya samajhte hain

प्रश्न – औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं?

(BA – Third Year – Subject: History of Contemporary India 1947–2004 – Paper II – Subject Code: A3-HIST 2D)

प्रस्तावना:

औद्योगीकरण का अर्थ है—एक ऐसे आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया, जिसमें किसी राष्ट्र या क्षेत्र की कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था का रूपांतरण औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित अर्थव्यवस्था में होता है। भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तीव्र गति से आरंभ हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और बेरोजगारी व गरीबी को समाप्त करना था।


औद्योगीकरण की परिभाषा:

औद्योगीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी देश में आधुनिक तकनीकों, मशीनों, और पूंजीगत संसाधनों के प्रयोग से उद्योगों की स्थापना होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है। यह न केवल आर्थिक बदलाव लाता है, बल्कि समाज, संस्कृति और राजनीति को भी प्रभावित करता है।


भारत में औद्योगीकरण की आवश्यकता:

  1. आर्थिक विकास के लिए: भारत की स्वतंत्रता के समय देश की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। औद्योगीकरण को विकास का प्रमुख साधन माना गया।
  2. रोजगार सृजन: कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के कारण छिपी हुई बेरोजगारी व्याप्त थी। उद्योगों के विकास से रोजगार के नए अवसर मिले।
  3. स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा: विदेशी आयात पर निर्भरता को कम कर स्वदेशी उद्योगों का विकास करना आवश्यक था।
  4. राष्ट्रीय सुरक्षा: रक्षा और रणनीतिक उपकरणों के उत्पादन के लिए घरेलू उद्योगों की स्थापना आवश्यक थी।

भारत में औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषताएँ:

  1. योजना आधारित विकास: भारत में औद्योगीकरण पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत हुआ। विशेषकर द्वितीय और तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं में भारी उद्योगों पर ज़ोर दिया गया।
  2. सरकारी नियंत्रण: प्रारंभिक दशकों में अधिकांश उद्योगों का नियंत्रण सरकार के अधीन था। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ स्थापित की गईं।
  3. उद्योगों का क्षेत्रीय विकास: नए औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), औद्योगिक टाउनशिप आदि बनाए गए।
  4. विदेशी निवेश और तकनीक: 1991 के बाद उदारीकरण की नीति के तहत निजी और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया गया।

औद्योगीकरण के लाभ:

  1. आर्थिक समृद्धि: देश की GDP में वृद्धि हुई और उत्पादन का स्तर बढ़ा।
  2. रोजगार के अवसर: विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला।
  3. शहरीकरण को बढ़ावा: उद्योगों के इर्द-गिर्द नए शहर और नगर विकसित हुए।
  4. नवाचार और तकनीकी विकास: औद्योगिक विकास के साथ-साथ अनुसंधान और विकास की प्रवृत्ति बढ़ी।
  5. निर्यात में वृद्धि: औद्योगिक उत्पादों के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित हुई।

औद्योगीकरण की चुनौतियाँ:

  1. पर्यावरणीय प्रभाव: उद्योगों से होने वाले प्रदूषण ने जल, वायु और भूमि को प्रभावित किया।
  2. असमान विकास: केवल कुछ क्षेत्रों में उद्योग केंद्रित होने से क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न हुआ।
  3. श्रमिकों की समस्याएँ: कई निजी क्षेत्र के उद्योगों में श्रमिकों का शोषण और न्यूनतम वेतन की समस्या बनी रही।
  4. कृषि की उपेक्षा: उद्योगों के पक्ष में नीतियाँ बनने से कृषि क्षेत्र की अनदेखी हुई।

भारत में औद्योगीकरण की प्रमुख नीतियाँ:

  1. औद्योगिक नीति, 1948: स्वतंत्र भारत की पहली औद्योगिक नीति जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की भूमिकाएं निर्धारित की गईं।
  2. औद्योगिक नीति, 1956: मिश्रित अर्थव्यवस्था को स्पष्ट करते हुए भारी उद्योगों पर बल दिया गया।
  3. नव औद्योगिक नीति, 1991: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की ओर निर्णायक कदम। लाइसेंस राज को समाप्त किया गया और FDI को प्रोत्साहन मिला।

प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों का विकास:

  1. बंगलुरु – सूचना प्रौद्योगिकी हब
  2. पुणे – ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग
  3. गुजरात – पेट्रोकेमिकल्स और टेक्सटाइल
  4. झारखंड – इस्पात उद्योग
  5. तमिलनाडु – इलेक्ट्रॉनिक्स और परिधान उद्योग

निष्कर्ष:

औद्योगीकरण भारत के आर्थिक विकास की रीढ़ है। यह न केवल देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि सामाजिक व राजनीतिक चेतना को भी प्रभावित करता है। हालांकि, यह आवश्यक है कि उद्योगों का विकास संतुलित और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जिम्मेदार हो, ताकि आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित किया जा सके।


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