भारत-चीन युद्ध पर प्रकाश डालिए। Bharat-China Yudh par Prakash Daliye

Bharat-China Yudh par Prakash Daliye

प्रश्न – भारत-चीन युद्ध पर प्रकाश डालिए।

(Subject: History – History of Contemporary India 1947–2004 | Paper II | Subject Code: A3-HIST 2D)

भूमिका:

भारत और चीन दो प्राचीन सभ्यताएं हैं जिनके संबंध ऐतिहासिक रूप से सांस्कृतिक, व्यापारिक और धार्मिक स्तर पर गहरे रहे हैं। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, दोनों देशों के मध्य सीमा विवादों के कारण संबंध तनावपूर्ण हो गए और वर्ष 1962 में यह विवाद एक भीषण युद्ध में परिवर्तित हो गया जिसे “भारत-चीन युद्ध” के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध भारत के लिए एक बड़ा धक्का था और समकालीन भारतीय इतिहास में इसका विशेष स्थान है।


भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • पंचशील समझौता (1954): भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित पंचशील समझौता हुआ, जिससे लगा कि दोनों देशों के बीच मित्रता प्रगाढ़ होगी।
  • “हिंदी-चीनी भाई-भाई”: प्रधानमंत्री नेहरू और माओ ज़ेदोंग के नेतृत्व में मित्रता का माहौल था। लेकिन यह केवल कूटनीतिक स्तर पर था, ज़मीनी सच्चाई इसके विपरीत थी।
  • तिब्बत का मुद्दा: चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया, जो भारत के लिए चिंता का विषय था। भारत ने दलाई लामा को शरण दी, जिससे चीन नाराज़ हो गया।
  • सीमा विवाद: चीन, अरुणाचल प्रदेश (जिसे वह “दक्षिण तिब्बत” कहता है) और अक्साई चिन पर अपना दावा करता था।

युद्ध के कारण:

  1. सीमा निर्धारण की अस्पष्टता:
    • ब्रिटिश काल की मैकमोहन रेखा को चीन ने कभी स्वीकार नहीं किया।
    • लद्दाख क्षेत्र के अक्साई चिन में चीन ने सड़क बना ली थी, जो भारत को बाद में पता चला।
  2. चीन की विस्तारवादी नीति:
    • माओ की नीति के अनुसार चीन अपने सीमावर्ती क्षेत्रों को नियंत्रित करना चाहता था।
  3. दलाई लामा को शरण देना:
    • भारत द्वारा 1959 में दलाई लामा को शरण देना चीन को बहुत खटका, जिससे भारत पर दबाव बढ़ा।
  4. कूटनीतिक विफलता:
    • भारत ने “गुटनिरपेक्ष नीति” अपनाई थी और सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं जुटाया।

युद्ध की शुरुआत:

  • तारीख: 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया।
  • दिशाएं: दो प्रमुख मोर्चों पर हमला – लद्दाख और उत्तर-पूर्वी सीमा (नेफा/अरुणाचल प्रदेश)।
  • भारतीय तैयारी की कमी: भारत की सैन्य तैयारियां अत्यंत कमजोर थीं; हथियार, कपड़े और प्रशिक्षण की भारी कमी थी।
  • चीन की बढ़त: चीन ने कुछ ही दिनों में अक्साई चिन और नेफा के अधिकांश भागों पर कब्जा कर लिया।

युद्ध का परिणाम:

  • 20 नवम्बर 1962: चीन ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की और पीछे हट गया, लेकिन अक्साई चिन उसके नियंत्रण में बना रहा।
  • हजारों सैनिक शहीद: भारत को जनशक्ति और मनोबल दोनों में भारी क्षति उठानी पड़ी।
  • नेहरू की छवि पर प्रभाव: प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नीति और कूटनीतिक दृष्टिकोण पर प्रश्न उठे।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर पुनर्विचार: भारत ने अपनी सैन्य संरचना और खुफिया तंत्र को मजबूत किया।

भारत पर प्रभाव:

  1. सैन्य सुदृढ़ीकरण:
    • 1962 के युद्ध के बाद भारत ने अपने सैन्य ढांचे का विस्तार किया।
    • नए सैन्य ठिकाने, हथियारों की खरीद, और रक्षा बजट में वृद्धि हुई।
  2. राष्ट्रीय एकता में वृद्धि:
    • युद्ध के समय समस्त भारतवासी एकजुट हो गए, जिससे राष्ट्रीय भावना मजबूत हुई।
  3. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में परिवर्तन:
    • भारत ने रूस और अमेरिका से अपने रिश्तों को प्रगाढ़ किया।
    • गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की स्थिति मजबूत हुई लेकिन रक्षा नीति में बदलाव आया।
  4. राजनीतिक बदलाव:
    • कांग्रेस सरकार की आलोचना हुई। रक्षामंत्री वी. के. कृष्ण मेनन को इस्तीफा देना पड़ा।

चीन पर प्रभाव:

  • आंतरिक प्रचार: चीन ने युद्ध को एक “सफल अभियान” के रूप में अपने नागरिकों को प्रस्तुत किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय आलोचना: आक्रमणकारी के रूप में चीन की छवि को धक्का लगा।

युद्ध के बाद भारत की नीतियाँ:

  • सीमा सुरक्षा पर ज़ोर: चीन से लगी सीमा पर सड़कों, बंकरों और संचार प्रणाली को विकसित किया गया।
  • इंटेलिजेंस नेटवर्क की मजबूती: रॉ (RAW) और IB जैसी एजेंसियों को अधिक सक्रिय और आधुनिक बनाया गया।

निष्कर्ष:

भारत-चीन युद्ध 1962 भारतीय इतिहास की एक त्रासदीपूर्ण लेकिन निर्णायक घटना थी। इसने भारत को यह सिखाया कि केवल शांतिपूर्ण नीति से सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती। इस युद्ध ने भारत की रक्षा नीति, कूटनीति और आंतरिक संरचना को नई दिशा दी। यह युद्ध आज भी हमें चीन के साथ संबंधों में सतर्कता और आत्मनिर्भरता की आवश्यकता का बोध कराता है।


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