अवलोकन विधि से आपका क्या तात्पर्य है? Avalokan vidhi se aapka kya tatparya hai

Avalokan vidhi se aapka kya tatparya hai

विषय: व्यक्तित्व विकास (Personality Development)
कोर्स कोड: V3-PSY-DEVT
प्रश्न: अवलोकन विधि से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:


परिचय:

मनोविज्ञान में व्यक्तित्व, व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन हेतु कई विधियों का प्रयोग किया जाता है। इन विधियों में से अवलोकन विधि (Observation Method) एक अत्यंत उपयोगी और व्यवहारिक विधि मानी जाती है। यह विधि अनुसंधान, मूल्यांकन, शिक्षण, बाल-विकास अध्ययन, चिकित्सकीय मूल्यांकन तथा व्यक्तित्व अध्ययन जैसे क्षेत्रों में अत्यंत लोकप्रिय है।

अवलोकन विधि के अंतर्गत, किसी व्यक्ति या समूह के व्यवहार का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण किया जाता है, जिससे शोधकर्ता या मनोवैज्ञानिक यह जान सकते हैं कि व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया करता है।


अवलोकन विधि की परिभाषा:

“जब किसी व्यक्ति, समूह या गतिविधि के व्यवहार को योजनाबद्ध, नियंत्रित और उद्देश्यपूर्ण ढंग से प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है, तो उसे अवलोकन विधि कहा जाता है।”


अवलोकन विधि का तात्पर्य:

अवलोकन विधि का तात्पर्य है – किसी विषय या व्यक्ति के व्यवहार, भाव-भंगिमा, हावभाव, बोलचाल, प्रतिक्रिया एवं अन्य सामाजिक क्रियाकलापों का प्रत्यक्ष निरीक्षण करना और उन्हें समझना। इस विधि में किसी बाहरी हस्तक्षेप के बिना केवल निरीक्षण (Observation) के माध्यम से सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं।

अवलोकन विधि का प्रयोग विशेषतः तब किया जाता है जब:

  • उत्तरदाता सच्चाई न बताए,
  • व्यक्ति छोटा बच्चा हो या बोलने में असमर्थ हो,
  • किसी व्यवहार का गहराई से अध्ययन करना हो।

अवलोकन विधि के उद्देश्य:

  1. व्यवहार का प्रत्यक्ष अध्ययन करना।
  2. व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को समझना।
  3. व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करना।
  4. प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों प्रकार की परिस्थितियों में व्यवहार को समझना।

अवलोकन विधि के प्रकार:

1. प्राकृतिक (Naturalistic) अवलोकन:

इसमें व्यक्ति का अध्ययन उसकी स्वाभाविक और वास्तविक परिस्थिति में किया जाता है। शोधकर्ता उसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता।

उदाहरण: किसी छात्र का विद्यालय में व्यवहार, खेलते समय बच्चों की गतिविधियां आदि।

2. नियंत्रित (Controlled) अवलोकन:

यह प्रयोगशाला या कृत्रिम वातावरण में किया जाता है। इसमें शोधकर्ता परिस्थितियों को नियंत्रित करता है और व्यक्ति की प्रतिक्रियाएं देखता है।

उदाहरण: प्रयोगशाला में बच्चे के सामने किसी खिलौने को रखने पर उसकी प्रतिक्रिया।

3. सहभागी (Participant) अवलोकन:

इसमें शोधकर्ता समूह या गतिविधि का हिस्सा बन जाता है और अंशतः सहभागिता करके व्यवहार का अध्ययन करता है।

उदाहरण: एक अध्यापक जब कक्षा में विद्यार्थी की तरह बैठकर बच्चों के व्यवहार का अवलोकन करता है।

4. अप्रत्यक्ष (Non-participant) अवलोकन:

शोधकर्ता केवल बाहर से निरीक्षण करता है और व्यक्ति की गतिविधियों को बिना भाग लिए रिकॉर्ड करता है।


अवलोकन विधि की विशेषताएं:

  1. प्रत्यक्षता: यह विधि प्रत्यक्ष निरीक्षण पर आधारित होती है, जिससे प्राप्त जानकारी अधिक विश्वसनीय होती है।
  2. प्राकृतिकता: व्यवहार स्वाभाविक होता है क्योंकि व्यक्ति को कभी-कभी पता नहीं होता कि उसे देखा जा रहा है।
  3. गहन अध्ययन: किसी विशेष व्यवहार या व्यक्ति के गहरे अध्ययन में सहायक।
  4. प्रारंभिक अध्ययन हेतु उपयोगी: किसी विषय पर प्रारंभिक जानकारी प्राप्त करने के लिए उपयोगी।

अवलोकन विधि के लाभ:

  1. सरल और व्यावहारिक: इस विधि को प्रयोग में लाना अपेक्षाकृत आसान है।
  2. शब्दों से परे व्यवहार का अध्ययन: जिन व्यवहारों को व्यक्ति शब्दों में नहीं बता सकता, उन्हें देखा जा सकता है।
  3. छोटे बच्चों के अध्ययन में सहायक: जो बोल नहीं सकते, उनका अध्ययन केवल अवलोकन से ही संभव है।
  4. सामाजिक व्यवहार का अध्ययन: समूह व्यवहार, नेतृत्व शैली, संवाद आदि को देखने में सहायक।
  5. मानसिक विकारों की पहचान: रोगी की गतिविधियों से उसके मानसिक रोग की पहचान संभव है।

अवलोकन विधि की सीमाएं:

  1. पूर्वाग्रह (Bias) की संभावना: शोधकर्ता की व्यक्तिगत धारणा परिणाम को प्रभावित कर सकती है।
  2. गोपनीयता का हनन: यदि व्यक्ति को पता चल जाए कि उसे देखा जा रहा है, तो वह कृत्रिम व्यवहार कर सकता है।
  3. सीमित व्यवहार की जानकारी: यह विधि केवल बाहरी व्यवहार को ही दर्शाती है, आंतरिक मनोस्थिति को नहीं।
  4. समय-साध्य: यह विधि लंबी अवधि ले सकती है, क्योंकि स्वाभाविक घटनाएं तुरंत नहीं घटतीं।
  5. रिकॉर्डिंग कठिन: हर व्यवहार को लिखित रूप में सटीकता से दर्ज करना चुनौतीपूर्ण होता है।

अवलोकन विधि की उपयोगिता:

  1. शिक्षा क्षेत्र में: छात्रों के व्यवहार, सीखने की शैली, एकाग्रता, सामाजिकता आदि का विश्लेषण।
  2. मानसिक रोग निदान में: रोगी की आदतों, प्रतिक्रियाओं व हावभाव से मनोदशा की पहचान।
  3. सामाजिक अनुसंधान में: समूह व्यवहार, सांस्कृतिक अंतर, नेतृत्व गुणों का अध्ययन।
  4. बाल विकास अध्ययन में: शैशव काल के व्यवहारिक विकास, भाषा अधिग्रहण आदि की जानकारी।
  5. कार्यालयीन वातावरण में: कर्मचारियों के कार्य प्रदर्शन, समूह सहभागिता का मूल्यांकन।

एक उदाहरण के रूप में अवलोकन विधि:

मान लीजिए एक शिक्षक यह जानना चाहता है कि कक्षा में कौन-कौन से विद्यार्थी ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं और कौन नहीं। वह कक्षा में बिना कुछ बताए, धीरे-धीरे सभी विद्यार्थियों के हावभाव, बैठने की मुद्रा, उत्तर देने की प्रवृत्ति, ध्यान देने का स्तर आदि का अवलोकन करता है। इस आधार पर वह यह निष्कर्ष निकालता है कि किन बच्चों को अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है।


निष्कर्ष (Conclusion):

अवलोकन विधि एक प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक तकनीक है, जो व्यवहारिक अनुसंधान और विश्लेषण के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसकी सहायता से हम किसी व्यक्ति या समूह के व्यवहार का वास्तविक, सटीक और गहराई से मूल्यांकन कर सकते हैं। हालांकि इसके कुछ सीमाएं हैं, फिर भी सही प्रशिक्षण, तटस्थता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका उपयोग करके अत्यधिक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है। व्यक्तित्व विकास और व्यवहार विज्ञान में यह विधि आज भी अत्यंत उपयोगी मानी जाती है।


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